Khabarwala 24 News New Delhi : AI Achieve Human Intelligence साल 2030 तक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) इंसानों जैसी बुद्धिमता हासिल कर लेगा। यानी वह इंसानों की तरह सोच-समझ सकेगा। इसे आर्टिफिशिलय जनरल इंटेलिजेंस (AGI) कहा जाता है। गूगल डीपमाइंड के एक नए रिसर्च में यह भविष्यवाणी की गई है। रिसर्चरों ने इसके साथ ही एक डराने वाली भविष्यवाणी भी की है और कहा है कि ऐसा होने पर मानव जाति पर खतरा उत्पन्न हो सकता है क्योंकि AGI इंसानी दरकार को खत्म कर सकती है और दुरुपयोग किया जा सकता है।
मानव का अस्तित्व खत्म (AI Achieve Human Intelligence)
इस रिसर्च स्टडी में इस बात पर जोर दिया गया है कि एजीआई के व्यापक संभावित विकास को देखते हुए हमें आशंका है कि यह इंसानों के लिए गंभीर नुकसान का संभावित जोखिम पैदा कर सकता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि AGI मानव जाति के अस्तित्व को भी खत्म कर सकता है यानी मानवता को स्थायी रूप से नष्ट कर सकता है। रिसर्च पेपर में इसके दुरुपयोग की रोकथाम का भी उल्लेख किया गया है
रिसर्च पेपर में और क्या? (AI Achieve Human Intelligence)
हालांकि, इस रिसर्च पेपर में यह नहीं बताया गया है कि AGI किस तरह से मानवता को स्थायी रूप से नष्ट कर सकता है। इस रिसर्च पेपर को गूगल डीपमाइंड के सह संस्थापक शेन लेग द्वारा संयुक्त रूप से लिखा गया है। रिसर्च पेपर में लेखन ने उन निवारक उपायों पर भी जोर दिया है कि कैसे गूगल और AI कंपनियां AGI के खतरों को कमतर कर सकती हैं और भविष्य में इंसानों पर AI के प्रभुत्व को कैसे कमतर किया जा सकता है।
4 तरह के जोखिम का खतरा (AI Achieve Human Intelligence)
इस रिसर्च पेपर में एडवांस्ड AI के जोखिमों और खतरों को चार कैटगरी में बांटा गया है। इसके तहत गलत उपयोग (Misuse), गलत समायोजन (Misalignment), गलतियाँ (Mistakes) और संरचनात्मक जोखिम (Structural Risks) का उल्लेख किया गया है। रिसर्च पेपर में बताया गया है कि कैसे दूसरों को नुकसान पहुँचाने के लिए AGI का गलत उपयोग किया जा सकता है।
अम्ब्रेला संस्थान की वकालत (AI Achieve Human Intelligence)
AGI के पूर्ण विकास और प्रभाव से मानव जाति पर किस तरह का खतरा पैदा हो सकता है। रिसर्च पेपर में लिखा गया है कि डीपमाइंड के सीईओ डेमिस हसाबिस ने फरवरी में ही कहा था कि एजीआई, जो इंसानों जितना या उससे भी ज़्यादा स्मार्ट है, अगले पाँच या दस सालों में उभरना शुरू हो जाएगा। उन्होंने एजीआई के विकास की देखरेख के लिए संयुक्त राष्ट्र जैसे एक वैश्विक रेग्युलेटरी संगठन की भी वकालत की।