Khabarwala 24 News New Delhi :Artificial Rain पूरी दुनिया को पानी की सबसे ज्यादा जरूरत है। बारिश का पानी पानी के प्रमुख प्राकृतिक स्रोत में से एक है। पानी के बिना हम जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। यही कारण है कि चीन जैसे देश आर्टिफिशियल बारिश की टेक्नोलॉजी पर काम कर रहे हैं। आर्टिफिशियल बारिश प्रोजेक्ट पर करोड़ों रूपये खर्च होते हैं। ये सभी खर्च शहर और जहां पर आर्टिफिशियल बारिश होनी है। वहां के एरिया पर भी निर्भर करता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली सरकार जो आईआईटी कानपुर के साथ इस प्रोजेक्ट पर बात कर रही। उस प्रोजेक्ट का खर्चा करीब 13 करोड़ रुपये से ज्यादा है। इस टेक्नोलॉजी का सबसे बड़ा फायदा ये है कि किसी खास एरिया में सूखा पड़ने पर बरसात के जरिए आर्टिफिशियल बारिश का सहारा लिया जा सकता है। यह एग्रीकल्चर, एनवायरेनमेंट या वाटर रिसॉर्स मैनेजमेंट जैसे कामों के लिए मौसम के पैटर्न को बदलने वाली शानदार टेक्नोलॉजी है। आज हम आपको बताएंगे कि आर्टिफिशियल बारिश कैसे होती है और ये असल बारिश से कितना अलग है।
आर्टिफिशियल बारिश कैसे होती है? (Artificial Rain)
आर्टिफिशियल रेन यानी क्लाउड सीडिंग एक मौसम में बदलाव लाने वाली टेक्नोलॉजी है। इसके जरिए बादलों में कुछ पदार्थ डाले जाते हैं, जिससे बरसात होती है। जानकारी के मुताबिक क्लाउड सीडिंग करने के लिए एयरोप्लेन या हेलीकॉप्टर के जरिए बादलों में सिल्वर आयोडाइड या पोटैशियम आयोडाइड जैसे आम पदार्थों का छिड़काव किया जाता है। जिसके बाद ये पदार्थ न्यूक्लाई की तरह काम करते हैं, जिनके आसपास पानी की बूंदे बन सकती हैं। इस प्रोसेस के जरिए बारिश की बूंदें बनती हैं और इस तरह क्लाउड सीडिंग के जरिए बरसात की जाती है, लेकिन इस टेक्नोलॉजी की सफलता भी मौसम के एक खास स्थिति पर निर्भर करती है। बता दें कि इसकी सफलता में नमी से भरे बादल और हवा का सही पैटर्न अहम रोल निभाता है।