Sunday, July 7, 2024

ayodhya ke ram विद्वानों ने कर दिखाया इस बात को साबित, भगवान राम शाकाहारी थे या मांसाहारी, विवाद हुआ खत्म…

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Khabarwala 24 News Noida : ayodhya ke ram रामलला की प्राण प्रतिष्ठा से पहले देश का सियासी पारा चढ़ा हुआ है। 22 जनवरी 2024 को रामलला अयोध्या में बन रहे भव्य राम मंदिर में विराजमान होंगे और इस बीच एक नया विवाद भी शुरू हो गया है। चर्चा हो रही है कि राम भगवान शाकाहारी थे या मांसाहारी।

वैसे इस विवाद को शुरू करने में राष्ट्रवादी कांग्रेस (शरद पवार गुट) के नेता जितेंद्र आव्हाड का बड़ा हाथ रहा। बीते दिनों एक कार्यक्रम में आव्हाड ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा था कि राम मांसाहारी थे, वो शिकार करते थे. जितेंद्र आव्हाड का बयान ही नहीं इस पूरे विवाद को हवा देने का काम नयनतारा की फिल्म ‘अन्नपूर्णी’ ने भी किया जो हाल ही में नेफ्टिक्स पर रिलीज हुई थी। इसमें एक श्लोक के माध्यम से बताया गया कि वनवास के दौरान राम, लक्ष्मण और सीता ने मांस का भक्षण किया।

लोगों का कड़ा विरोध देखने को मिला (ayodhya ke ram)

इसी को लेकर लोगों का जबरदस्त विरोध देखने को मिला. नेटफ्लिक्स का बायकॉट शुरू हुआ और फिर तमाम आरोपों के बीच नेटफ्लिक्स ने आनन-फानन में नयनतारा की ‘अन्नपूर्णी’ को अपने प्लैटफॉर्म से हटा दिया है। लोगों ने इस फिल्म पर हिंदू विरोधी होने का आरोप लगाया। इस फिल्म के खिलाफ धार्मिक भावनाएं आहत करने का मामला भी दर्ज किया गया।

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एक्सपर्ट और शोधकर्ताओं के साथ बात (ayodhya ke ram)

इस विवाद को खत्म करने के लिए एक्सपर्ट और शोधकर्ताओं से बातचीत की। उन्होंने जो कहा वो जानना आपके लिए जरूरी है। जितेंद्र आव्हाड के बयान के बाद जब हमने डॉ रज्जन लाल मिश्रा से बातचीत की उन्होंने बताया कि भगवान राम, सीता और लक्ष्मण जब वनवास में थे तो रावण ने माया से सुंदर हिरण को भेजा था, जिसे देखकर माता सीता ने राम से जिद करते हुए कहा कि ये सुंदर हिरण उनको चाहिए।

इसतरह विवाद राम के लिए सही नहीं (ayodhya ke ram)

रज्जन लाल मिश्रा बताते हैं कि उनका शोध रामायण ही था, किसी भी रामायण में नहीं लिखा कि सीता माता के लिए राम शिकार करने गए थे। डॉ रज्जन लाल मिश्रा राम मंदिर आंदोलन से जुड़े रहे हैं। उन्होंने कानपुर यूनिवर्सिटी से पीएचडी की थी, कारसेवा भी की थी और जेल भी गए। वो बताते हैं कि इस तरह का विवाद राम के लिए सही नहीं है।

ऐसी माया रची कि बाण चलाना पड़ा था (ayodhya ke ram)

डॉ मिश्रा बताते हैं कि स्वघोषित विद्वानों ने अपनी सुविधा के अनुसार वाल्मीकि रामायण या तुलसीदास रचित रामचरितमानस का अनुवाद किया। अपनी सुविधा के अनुसार शब्दों के अर्थ निकाले, जिस कारण ये भ्रम पैदा हुआ. दरअसल हिरण (मृग) को पालने के लिए राम भगवान पकड़ने गए थे। वाल्मीकि रामायण में ये साफ लिखा है कि भगवान राम मृग को पकड़ने गए थे लेकिन ऐसी माया रची गई कि राम भगवान को बाण चलाना पड़ा था।

राम लोकनायक हैं बाकी चर्चा निरर्थक (ayodhya ke ram)

हमने दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय स्थित स्कूल ऑफ लैंग्वेज लिटरेचर एंड कल्चर स्टडीज में सहायक प्रोफेसर डॉ मलखान सिंह से बातचीत की। मलखान सिंह कहते हैं कि राम एक लोकनायक हैं, यानी वो आमजनों के नायक हैं और आमजन ने ही उन्हें नायक बनाया है। एक तो ये चर्चा ही निरर्थक है कि राम शाकाहारी थे या मांसाहारी। वो आमजनों को कैसे जोड़ते हैं इस पर बात होनी चाहिए।

अवध क्षेत्र की संस्कृति के नायक राम (ayodhya ke ram)

डॉ मलखान सिंह बताते हैं कि राम कथा जब आप पढ़ेंगे तो हर क्षेत्र की स्थिति में भिन्नता मिलेगी, जो लेखक जिस क्षेत्र के थे उस क्षेत्र में आपको राम उसी क्षेत्रीयता के साथ मिलेंगे। मलखान सिंह के अनुसार तुलसीदास अवध क्षेत्र की संस्कृति के नायक के रूप में लिखते हैं। इस कारण उनके लेखन में राम शाकाहारी हैं। कारण था अवध क्षेत्र में शाकाहार का प्रचलन. लेकिन, जब आप मिथिलांचल या बंगाल क्षेत्र में जाएंगे तो वहां पर आपको अलग तरह से राम की छवि दिखाई देगी।

विराट छवि धूमिल करने का विवाद (ayodhya ke ram)

डॉ मलखान सिंह बताते हैं कि अभी बस राम की विराट छवि को धूमिल करने के लिए ये विवाद खड़ा किया जा रहा है। मिथिला में आज भी शादियों में वर के पिता को थाली में माछ (मछली) का सिर उपहार देने का प्रावधान है। मिथिला क्षेत्र में विद्वानों से भी हमने बातचीत की। आचार्य पंडित मुकेश मिश्र बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से आचार्य की डिग्री लेकर कर्मकांड व शोध कर रहे हैं। वो बताते हैं कि हिन्दू धर्म में मांसाहार और शाकाहार दोनों को समान स्थान मिला हुआ है।

अनुयायी को मित्रवत रहना चाहिए (ayodhya ke ram)

मनुस्मृति में भी एक श्लोक है, “न मांस भक्षणे दोषः, न मीने न मैबुने, प्रवित्तिरेषा भूताना निवृतिअस्तु महाप्रला.” जिससे ये साबित होता है कि ये कोई विवाद का विषय नहीं होना चाहिए। आचार्य मुकेश मिश्रा बताते हैं कि किसी समय में शैव और वैष्णव संप्रदाय आपस में लड़ते थे। विवाद को खत्म करने के लिए तुलसीदास ने रामचरितमानस में दिखाया कि विष्णु के अवतार राम और शिव के अवतार हनुमान अच्छे मित्र हैं। उनके अनुयायियों को भी उसी तरह मित्रवत रहना चाहिए।

मिथिला में बतौर ठाकुर पूजनीय (ayodhya ke ram)

आचार्य पंडित मुकेश मिश्रा बताते हैं कि राम भगवान के शाकाहारी होने के प्रमाण मिथिला की लोक कथाओं में मिलता है। लोक कथाओं के अनुसार राम भगवान से सीता ने अपने मायके वालों के लिए वरदान मांगा था कि जो भी अभोजन को भोजन मानते हैं। उनको माफ करें और आशीर्वाद दें. मुकेश मिश्रा कहते हैं कि आज भी मिथिला क्षेत्र में राम भगवान ठाकुर जी के रूप में पूजे जाते हैं।

सुंदरकांड के 36वें सर्ग को देखिये (ayodhya ke ram)

इंडोलॉजिस्ट ललित मिश्रा बताते हैं कि आर्कियोलॉजी के अनुसार मानव सभ्यता की शुरुआत के बाद भारत ही पहला देश था जहां के लोग खेती और शाकाहारी भोजन की तरफ आए थे। जिन्होंने शाकाहार नहीं अपनाया वो अरावन कहलाए यानी कच्चा मांस खाने वाले। उसी में एक अरावन, रावण मशहूर हुआ। यानी लंका के लोग मांसाहारी थे, ये तो पक्का हो जाता है. उसी पांडुलिपियों में जहां रावण की चर्चा है वहां राम की भी चर्चा मिलती है। ऐसे में समय के साथ पांडुलिपियों में हेरफेर हुई है. जिस कारण यह भ्रम फैला कि राम भगवान मांसाहारी थे। आप रामचरितमानस के सुंदरकांड के 36वें सर्ग को देखिये वहां 41वें श्लोक में साफ लिखा है ना मांसं राघवो भुङ्क्ते न चैव मधु सेवते. वन्यं सुविहितं नित्यं भक्तमश्नाति पञ्चमम्. जिस ये साफ होता है कि राम शाकाहारी थे।

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