Khabarwala 24 News New Delhi : Brave woman Rani Durgavati कालिंजर के राजा कीरत सिंह की सुपुत्री और गोंड राजा दलपत शाह की पत्नी रानी दुर्गावती की वीरता से भला कौन परिचित नहीं होगा। देश की महान वीरांगना रानी दुर्गावती ने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने हाथों से अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे। मुगल शासक अकबर के सामने झुकने के बजाय उन्होंने खुद ही अपना खंजर अपने सीने में उतार लिया था। वह तारीख थी 24 जून 1565। उनकी शहादत को अब बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता है। आइए जानते हैं रानी दुर्गावती की वीरता की कहानी…
तीरंदाजी और बंदूक से निशाना साधने में माहिर (Brave woman Rani Durgavati)
5 अक्तूबर 1524 ईस्वी को रानी दुर्गावती का जन्म आज के बुलंदेलखंड के बांदा जिले में हुआ था। दुर्गा अष्टमी के दिन जन्म होने के नाते नाम रखा गया दुर्गावती. वह कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की इकलौती संतान थीं इसलिए बड़े लाड़-प्यार से पालन-पोषण हुआ था। उन्होंने बचपन से ही घुड़सवारी, तीरंदाजी और तलवारबाजी जैसी युद्ध कलाओं को सीखना शुरू कर दिया था। तीरंदाजी और बंदूक से निशाना साधने में तो उनको महारत हासिल थी।
जबलपुर था राज्य का केंद्र, 16 साल शासन किया (Brave woman Rani Durgavati)
साल 1542 में दुर्गावती का विवाह गोंड राजा दलपत शाह के साथ हुआ तो रानी बन गईं। राजा दलपत शाह के पास गोंड वंश के 4 राज्य गढ़मंडला, चंदा, देवगढ़ और खेरला में से गढ़मंडला का शासन था। रानी के विवाह के केवल सात साल बाद ही राजा का निधन हो गया। उस वक्त उन दोनों का पुत्र सिर्फ पांच साल का था। अपने पांच साल के बेटे वीर नारायण को गद्दी पर बैठाकर रानी दुर्गावती ने गोंडवाना का शासन अपने हाथों में ले लिया। वर्तमान जबलपुर ही उनके राज्य का केंद्र था, वहां रानी ने लगभग 16 साल शासन किया।
मुगल सम्राट अकबर की काली नजरें राज्य पर पड़ीं (Brave woman Rani Durgavati)
यह साल 1556 की बात है। गोंडवाना पर मालवा के सुल्तान बाज बहादुर ने हमला बोला पर रानी दुर्गावती की बहादुरी और साहस के सामने उसे बुरी तरह से मुंह की खानी पड़ी। वहीं, साल 1562 में मालवा को अकबर ने मुगल साम्राज्य में मिला लिया था साथ ही रीवा पर आसफ खान ने कब्जा कर लिया था। रीवा और मालवा दोनों ही राज्यों की सीमाएं गोंडवाना को छूती थीं। इसके कारण गोंडवाना भी मुगलों के निशाने पर आ गया।
दुर्गावती की बहादुरी के आगे उसकी एक न चली (Brave woman Rani Durgavati)
अब अकबर चाहता था कि गोंडवाना को भी अपने साम्राज्य में मिला ले। आसफ खान ने गोंडवाना पर हमला भी किया पर रानी दुर्गावती की बहादुरी के आगे उसकी एक न चली। रानी दुर्गावती के पास भले ही सैनिकों की संख्या कम थी फिर भी उन्होंने युद्ध जारी रखा और सेनापति की वीरगति के बावजूद हौसला नहीं टूटने दिया। इससे मुगल भी हैरान रह गए थे।
डरकर युद्ध का मैदान छोड़कर नहीं भागीं रानी (Brave woman Rani Durgavati)
साल 1564 में एक बार फिर से आसफ खान ने हमला किया। इस युद्ध में रानी दुर्गावती अपने हाथी पर सवार होकर पहुंचीं। उनका बेटा भी युद्ध में साथ ही था। लड़ाई के दौरान रानी दुर्गावती को कई तीर लगे और वह गंभीर रूप से घायल हो गईं। उनका बेटा भी घायल हो गया, जिसे रानी ने सुरक्षित भेज दिया। इसी बीच तीर लगने से रानी बेहोश हो गईं।
अपनी कटार उठाई और खुद सीने में उतार लिया (Brave woman Rani Durgavati)
जबतक उन्हें होश आया। मुगल युद्ध जीत चुके थे। महावत ने रानी से भागने के लिए कहा लेकिन रानी ने ऐसा नहीं किया। जब उन्हें संदेह होने लगा कि अब जिंदा नहीं बचेंगी तो अपने दीवान आधार सिंह से कहा कि वह उनकी जान ले लें। दीवान ने ऐसा करने से मना कर दिया तो रानी दुर्गावती ने अपनी कटार उठाई और खुद अपने सीने में उतार लिया।