Khabarwala 24 News New Delhi : Crop Protection From Nilgai दिसंबर से जनवरी तक गेहूं और आलू की फसल को नीलगाय से ज्यादा खतरा रहता है। झुंड में आकर ये नीलगाय फसलों को कुछ घंटों में चट कर जाती हैं।
इससे किसानों का काफी अधिक आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है लेकिन अब किसानों को नीलगाय से होने वाले नुकसान को लेकर चिंता करने की जरूरत नहीं है। अगर किसान चाहें तो गेहूं और आलू के खेत में कुसुम की बुवाई कर सकते हैं क्योंकि कुसुम की महक से नीलगाय दूर भागती हैं। इससे फसलों को नुकसान होने से बचाया जा सकता है। खास बात यह है कि कुसुम की खेती में लागत भी बहुत कम आती है। किसान कम खर्चे में ही इसे उगा सकते हैं।
कुसुम की फसल को नहीं खाती नीलगाय (Crop Protection From Nilgai)
दरअसल, कुसुम एक तरह की तिलहन फसल है। इस फसल के अंकुरण के बाद इसमें कांटे निकल आते हैं। इसके चलते नीलगाय इसे खाने से बचती हैं। साथ ही नीलगाय को कुसुम के पौधों से निकलने वाली गंध भी पसंद नहीं है। ऐसे में वे इस गंध के चलते दूर से भाग जाती हैं। कृषि एक्सपर्ट के मुताबिक अगर किसान आलू और गेहूं के खेत की मेड़ पर कुसुम की बुवाई करते हैं तो उनकी फसल को नीलगाय बर्बाद नहीं करेंगी। साथ ही किसानों को एक साथ दो फसल भी मिल जाएगी।
बुवाई करने से पहले बीज का करें उपचार (Crop Protection From Nilgai)
खास बात यह है कि कुसुम की बुवाई करने से पहले बीज का उपचार करना जरूरी है। इसके लिए किसान फंगीसाइड का उपयोग कर सकते हैं। 20 ग्राम दवा को 10 किलो बीज पर स्प्रे करें फिर बीज पर पानी का छिड़काव करें। बुवाई करने से 4 घंटा पहले ही बीज का उपचार करें।
इससे फसल में रोग लगने की संभावना कम हो जाती है। ऐसे कुसुम की फसल 120 दिनों में तैयार हो जाती है। गेहूं-आलू के खेत में कुसुम की बुवाई करने पर फसल को नीलगाय से बचाने के साथ-साथ एक्स्ट्रा कमाई भी कर सकते हैं।