Ganga Khabarwala24News Garhmukteshwar (Hapur): ज्येष्ठ माह की वट सावित्री अमावस्या पर विभिन्न राज्यों से आए से श्रद्धालुओं ने ब्रजघाट समेत लठीरा और पूठ में Ganga गंगा में स्नान करके पुण्यार्जित किया। इस दौरान हर-हर गंगे के जयघोष से गंगानगरी गूंज उठी।
वट अमावस्या पर Ganga गंगा स्नान के लिए दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान समेत वेस्ट यूपी के दूरस्थ जिलों के श्रद्धालुओं का ब्रजघाट आगमन ब्रहस्पतिवार की देर शाम को ही प्रारंभ हो गया था। जिसके चलते दिन ढलते ही तीर्थनगरी की सैकड़ों धर्मशाला, मंदिर और आश्रम भीड़ से फुल हो गए थे। ब्रह्मकाल का शुभ मुहूर्त प्रारंभ होते ही हर-हर गंगे के जयकारों के बीच स्नान शुरू हो गया जो देर शाम में सूर्यास्त होने तक निरंतर चलता रहा। अधिकांश श्रद्धालुओं ने स्नान करने के बाद पंडितों से भगवान सत्यनारायण और सावित्री की कथा सुन उन्हें दक्षिणा दी।
शर्बत और शीतल जल की प्याऊ लगाई
दिल्ली, गाजियाबाद, नोएडा समेत विभिन्न महानगरों से आए श्रद्धालुओं ने ब्रजघाट गंगानगरी में प्याऊ लगाकर लोगों को शर्बत और शीतल जल पिलाया। इसके अलावा गरीब-निराश्रितों को भोजन-वस्त्र का दान भी किया।
घाट किनारे गंदगी छोड़ गए श्रद्धालु
Ganga गंगा में स्नान करने के बाद श्रद्धालुओं घाट किनारे गंदगी छोड़ गए। पॉलीथिन, पत्तल, फूल और पूजा सामग्री के जगह-जगह ढेर लग गए। ब्रजघाट में शुक्रवार की सुबह हर तरफ भक्तों की भीड़ नजर आ रही थी, लेकिन वापसी होते ही गंगा किनारे से लेकर हर तरफ कूड़े और गंदगी के ढेर दिखाई दे रहे हैं।
सुरक्षा के रहे कड़े प्रबंध
ज्येष्ठ माह की वट सावित्री अमावस्या पर बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के पहुंचने को लेकर पुलिस ने भी सुरक्षा के कड़े प्रबंध किए हुए थे। पुलिस टीम Ganga गंगा घाटों पर गश्त पर रही और संदिग्धों पर निगाह रखे हुए थे।
16 श्रृंगार कर सुहागनों ने की बरगद के पेड़ की पूजा
इस दिन सभी सुहागन महिलाएं पूरे 16 श्रृंगार कर बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं। ऐसा पति की लंबी आयु की कामना के लिए किया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन ही सावित्री ने अपने दृढ़ संकल्प और श्रद्धा से यमराज द्वारा अपने मृत पति सत्यवान के प्राण वापस पाए थे। इस कारण से ऐसी मान्यता चली आ रही है कि जो स्त्री सावित्री के समान यह व्रत करती है। उसके पति से लेकर घर पर आने वाले सभी संकट समाप्त होते हैं। इस दिन महिलाएं वट यानी बरगद के पेड़ के नीचे सावित्री सत्यवान और अन्य इष्टदेवों का पूजन करती हैं। इसी कारण से इस व्रत का नाम वट सावित्री पड़ा है। इस व्रत के परिणामस्वरूप सुखद और संपन्न दांपत्य जीवन का वरदान प्राप्त होता है।