Diwali In Mughal Kal Khabarwala 24 News New Delhi: दीपावली का त्यौहार भारत में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यहां तक कि विदेशों में भी लोग रोशनी के इस पर्व को मनाते हैं। भारत में जब मुगलों का दौर था, उस वक्त भी दीपावली के इस खास त्योहार को मनाया जाता था। हालांकि, जब अकबर जैसे मुगल बादशाहों के शासन या दरबार में दीपावली मनाई जाती थी तो उसका तरीका थोड़ा अलग होता था। यहां तक कि दीपावली को अलग नाम से जाना जाता था। हम आपको बताते हैं कि उस वक्त दीपावली के लिए क्या नाम इस्तेमाल किया जाता था और इस त्योहार को कैसे मनाया जाता था।
दीपावली को क्या कहते थे? (Diwali In Mughal Kal)
मुगलकाल में दीपावली को आज की तरह ही दीपक और पटाखों के जरिए मनाया जाता था। उस दौर में मुगल शासक इस पर्व को ‘जश्न-ए-चिरागां’ के नाम से जानते थे। इसके साथ ही राज दरबारों से लेकर आम जनता तक इस त्योहार को अच्छे से मनाया जाता था।
मुगल काल में कैसे मनाई जाती थी दीपावली? (Diwali In Mughal Kal)
मुगल काल के दौर की बात करें तो आम जनता को आज की तरह ही दीपावली मनाई जाती थी, लेकिन राज दरबारों में भी इसका काफी उत्साह रहता था। लाल किले के रंग महल में दीपावली की खास व्यवस्था की थी जाती थी और दीपक जलाए जाते थे। इसके साथ ही मुगल बादशाह को सोने और चांदी से तोला जाता था और फिर उस आभूषणों को जनता में ही बांट दिया जाता था।
यह भी कहा जाता है कि कुछ मुगल महिलाएं रोशनी और आतिशबाजी देखने के लिए कुतुब मीनार की चोटी पर चढ़ जाती थीं, इसके बाद आज पास में आतिशबाजी करवाई जाती थी। उस समय पटाखों की जगह आकाश दीया आदि का इस्तेमाल किया जाता था, जो काफी ऊपर रस्सियों के जरिए ऊपर जलाया जाता था और इसके साथ ही मुगल दरबार को अलग अलग दियों से कपाल के तेल के जरिए रौशन किया जाता था।
