Khabarwala24 News New Delhi : ELECTION 2023 कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा (BJP)को मिली करारी हार ने भाजपा को अपनी चुनावी रणनीति बदलने पर मजबूर कर दिया है। जानकारों की माने तो इस साल 2023 के आखिर में होने वाले 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा का चुनावी अभियान कर्नाटक की तरह नहीं होगा।
देश के चार अहम राज्य मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में इस साल 2023 के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। जिसमें से केवल मध्य प्रदेश में ही भाजपा की सरकार है। राजस्थान में भाजपा हर चुनाव में सत्ता बदलने के चलन के साथ छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में सत्ता विरोधी लहर के उसके पक्ष में होने की उम्मीद लगाए बैठी है।
गुटबाजी खत्म करने के लिए लेने होंगे कड़े फैसले
भाजपा के लिए गुटबाजी एक बड़ी चुनौती के तौर पर उभर कर सामने आई है। इसके चलते जगदीश शेट्टार जैसे नेताओं को टिकट नहीं दिया गया। राजस्थान और मध्य प्रदेश में बीजेपी के लिए गुटबाजी सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है, क्योंकि यहां के नेताओं में आपसी तालमेल नजर नहीं आता है। यह यह कहा जाए कि भाजपा को गुटबाजी खत्म करने के लिए अपनी रणनीति बदलनी होगी।
सूत्रों के मुताबिक, मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पार्टी का चेहरा बने रहेंगे, लेकिन उन्हें ज्योतिरादित्य सिंधिया, नरेंद्र सिंह तोमर और बीडी शर्मा जैसे अन्य नेताओं को अपने पक्ष में लाने के लिए कहा जाएगा। वर्ष 2020 में कांग्रेस से भाजपा में शामिल होने वाले सिंधिया और उनके तमाम करीबियों को पार्टी में बाहरी के तौर पर देखा जाता है। एेसी स्थिति में चुनाव के मद्देनजर टिकटों का वितरण कलह से भरी प्रक्रिया हो सकती है।
स्थानीय के साथ बड़े चेहरे को दी जाएगी वरीयता
राजस्थान में सूबे की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को केंद्रीय नेतृत्व के साथ कमजोर तालमेल के बावजूद वरीयता देने की संभावना अधिक जताई जा रही है। हालांकि, इसके साथ ही किरोड़ी लाल मीणा, गजेंद्र सिंह शेखावत, सतीश पूनिया और अन्य विभिन्न जाति समूहों से संबंधित राज्य के नेताओं को भी महत्व दिया जाएगा।
छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में क्या रहेगी स्थिति
छत्तीसगढ़ में पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह, वरिष्ठ नेता बृजमोहन अग्रवाल, अरुण साव को महत्व दिया जाएगा और तेलंगाना में बंदी संजय कमार, ई राजेंद्रन, जी किशन रेड्डी पार्टी के प्रमुख चेहरे होंगे। सूत्रों के अनुसार, कर्नाटक कांग्रेस की तरह ही राज्य के नेताओं को अपने मतभेदों को दूर करने और एक संयुक्त मोर्चे के तौर पर खुद को पेश करने के लिए कहा जाएगा।
वरिष्ठ नेताओं को चुनावी रणनीति में लगाया जाएगा
इसके साथ ही जनाधार वाले वरिष्ठ नेताओं को चुनावी रणनीति तैयार करने में लगाया जाएगा। मध्य प्रदेश में सरकार और संगठन के बीच बेहतर तालमेल रहेगा। जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं को महत्व दिया जाएगा। सूत्रों का कहना है कि मुद्दों, वादों और रणनीति को तय करने में उनकी प्रतिक्रिया महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।