Khabarwala24 News Muzaffarnagar : Funeral श्मशान घाट के 22 वर्षीय जवान बाहर बेटे का शव लिए मां बैठी रही। मजबूरी यह थी कि बेटे के इलाज में जो कुछ था सब खर्च हो गया। अब बची थी सिर्फ बेबसी। मां के पास पुत्र के शव के अंतिम संस्कार के लिए लकड़ी खरीदने तक के पैसे नहीं थे। बस चिंता यहीं सता रही थी कि बेटे का अंतिम संस्कार कैसे किया जाए। इसी बीच लावारिसों की वारिस कहीं जाने वाले साक्षी वेलफेयर ट्रस्ट की अध्यक्ष शालू सैने ने मदद के हाथ बढ़ाए और मां के बेटे का अंतिम संस्कार कराया।
आजमगढ़ से एक साल पहले मुजफ्फरनगर आई थी शारदा
बता दें कि आजमगढ़ से रोजगार के लिए करीब 1 साल पहले शारदा अपने एक 22 वर्षीय बेटे राहुल यादव के साथ मुजफ्फरनगर आई थी। यहां पर आकर राहुल एक फैक्ट्री में काम करने लगा था, लेकिन कुछ महीने पहले राहुल के फेफड़ों में संक्रमण हो गया था, जिसके चलते वह बीमार रहने लगा था। जिला अस्पताल से इलाज के बाद डॉक्टरों ने राहुल की हालत को नाजुक देखते हुए कुछ दिन पहले मेरठ मेडिकल कॉलेज के लिए रेफर कर दिया था। लेकिन राहुल को चिकित्सक भी नहीं बचा पाए और उसकी बीस मई को मौत हो गई।
बेबस मां की साक्षी वेलफेयर ने की मदद, कराया अंतिम संस्कार
राहुल यादव की मां शारदा अपने बेटे को किसी तरह मेरठ से मुजफ्फरनगर श्मशान घाट तक तो ले आई थी, लेकिन यहां आकर उसके पास इतने पैसे नहीं थे कि वह अपने बेटे का अंतिम संस्कार कर सके। जो पैसे थे वह इलाज में लग गए। नगर कोतवाली क्षेत्र स्थित श्मशान घाट पर पहुंची साक्षी वेलफेयर ट्रस्ट की अध्यक्ष क्रांतिकारी शालू सैनी ने इस बेबस मां शारदा के बेटे राहुल यादव का अंतिम संस्कार कराया।
फोन से मिली जानकारी
बताया गया कि शालू सैनी के पास एक फोन आया था जिसमें बताया गया कि पूरी रात से एक महिला अपने बेटे के शव को लेकर श्मशान घाट के बाहर बैठी है। उस समय सुबह के करीब साढ़े चार बजे के आसपास का समय था। शालू तुरन्त स्कूटी पर सवार होकर श्मशान घाट पहुंची और राहुल का अंतिम संस्कार पूरे विधि-विधान से कराया। इतनी सुबह कोई दुकान भी नहीं खुली हुई थी उन्होंने अत्येष्टि का समान लेने के लिए दुकान भी खुलवाई, तब जाकर अंतिम संस्कार हो सका।
लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करा रहीं शालू
आपको बता दें कि कोविड-19 के दौरान शालू सैनी ने इस काम का बीड़ा उठाया था। तब से वो लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार कराती आ रही हैं। बताया जाता है कि अब तक शालू सैनी बड़ी संख्या में ऐसी लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार कर चुकी हैं जिनका वारिस कोई नहीं था।