Tuesday, September 17, 2024

India in Olympics यूएसए-चीन की तरह भारत भी ओलंपिक में खटाखट मेडल क्‍यों नहीं जीत पाता, जानिए असली वजह

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Khabarwala 24 News New Delhi : India in Olympics पेरिस ओलंपिक 2024 खत्‍म होने के 4 दिन बाद भारत 15 अगस्‍त को स्‍वतंत्रता दिवस मना रहा होगा। इस बार आजादी के जश्‍न के साथ-साथ हम पेरिस ओल‍ंपिक 2024 में 5 पदक जीतने की खुशी भी मना रहे होंगे, मगर भारत 63वें स्‍थान पर रहा है जबकि 9 अगस्‍त तक अमेरिका 103 पदकों के साथ नबर वन व चीन 74 पदकों के साथ नंबर टू पर है।

ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर ओलंपिक में भारत भी अमेरिका, चीन, ऑस्‍ट्रेलिया जैसे देशों की तरह खटाखट पदक क्‍यों नहीं जीत पाता है? 1900 से लेकर 2024 तक भारत 25 ओलंपिक खेलों में कुल 40 पदक ही जीत पाया है, जो अमेरिका-चीन द्वारा अकेले पेरिस ओलंपिक 2024 में जीते पदकों के बराबर भी नहीं।

साइना नेहवाल ने बताई वजह (India in Olympics)

ओलंपिक में भारत को ज्‍यादा पदक नहीं मिलने की वजह बताते हुए भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल ने कहा कि भारत में सिर्फ क्रिकेट की अकादमी ज्‍यादा हैं। बैडमिंटन या अन्‍य खेलों की नहीं। हर खेलों की अनलिमिटेड अकादमी खोल दो। फिर चीन-अमेरिका की तरह भारतीय खिलाड़ी भी ओलंपिक पदकों की झड़ी लगा देंगे। नेहवाल ने कहा कि भारतीय से जो भी खिलाड़ी ओलंपिक से पदक ला रहे हैं, वो अपने दम पर ला रहे हैं। हमें ओलंपिक में जाने की कोई तनख्‍वाह नहीं मिलती।

सुविधाएं और तगड़ी मोटिवेशन (India in Olympics)

भारतीय खिलाड़ी खुद ही अपने लेवल पर हार-पैर मारकर ओलंपिक तक पहुंचते हैं। जबकि दुनिया के बेस्‍ट ट्रेनर और बेस्‍ट फिजियो तो सिर्फ क्रिकेट खिलाड़ियों को मिलते हैं। साइना नेहवाल यह भी कहती हैं कि अमेरिका, चीन व ऑस्‍टेलिया जैसे देश एक ही ओलंपिक में 100 तक पदक जीत लेते हैं। यह तभी संभव हो पाता है कि वहां ओलंपिक खिलाड़ियों को बेहतरीन सुविधाएं और तगड़ी मोटिवेशन मिलती है। जबकि इंडिया सिर्फ क्रिकेट को ज्‍यादा तव्‍व्‍जो दी जाती है।

चाइना में हैं ओलंपिक फैक्ट्रियां (India in Olympics)

पेरिस ओलंपिक 2024 में भारत ने जितने कुल पदक जीते हैं, उतने तो चीन के खिलाड़ियों ने एक-एक दिन में जीते हैं। इसकी वजह यह है कि चीन में ओलंपिक फैक्ट्रियां हैं, जहां ओलंपिक से पदक लाने वाले खिलाड़ी तैयार किए जा रहे हैं। चीन में ओलंपिक पदकों की फैक्‍ट्री को यूं समझिए कि चाइना में जब बच्‍चे पांच-छह साल के होते हैं तो वहां कि सरकार उनका जेनेटिक टेस्ट करवाती है ताकि यह पता लगाया जा सके कि बच्‍चे को कौनसे खेल में डाला जाए जिससे वह भविष्‍य में वह अपने बेस्‍ट दे सके।

वेट लिफ्टिंग व आर्चरी की तैयारी (India in Olympics)

मसलन, चीन में जिन बच्‍चे के जेनेटिकली रिफ्लेक्सेस ठीक होते हैं, उन्‍हे टेबल टेनिस में डाला जाता है। जो बच्‍चे फ्लेक्सिबल होते हैं, उन्‍हें जिम्‍नास्टिक जैसे खेलों में डाला जाता है। चीन में जिन बच्‍चों के शोल्‍डर स्‍ट्रॉंग होते हैं, उन्‍हें वेट लिफ्टिंग और आर्चरी जैसे खेलों के लिए तैयार किया जाता है। सलेक्‍शन के बाद ऐसे करीब 4 लाख बच्‍चों को इन फैक्ट्रियों में फुल टाइम रखा जाता है। बच्‍चों को इनमें सिर्फ फुल टाइम ट्रेनिंग करवाई जाती है।

सालभर प्रैक्टिस करते हैं बच्चे (India in Olympics)

यहां तक की इन बच्‍चों को अपने मां-बाप से मिलने का मौका भी साल में कुछ ही दिन मिल पाता है। इन बच्‍चों की पढ़ाई की बात करें तो चाइना के ओलंपिक गोल्‍ड मेडलिस्‍ट का आईक्‍यू लेवल इंडिया के पांचवीं क्‍लास के बच्‍चे के आईक्‍यू लेवल से भी कम होता है। ऐसे में जो चार लाख बच्‍चे सालभर प्रैक्टिस करते हैं। उनमें से भी जो .01 क्रीमिस्‍ट क्राउड होता है। उसे ओलंपिक में भेजा जाता है।

2028 के ओलंपिक की तैयारी (India in Olympics)

सांसद व पूर्व क्रिकेटर कीर्ति आजाद भी संसद यह सवाल उठा चुके हैं। कीर्ति आजाद बोले कि नीरज चोपड़ा ने जब तक टोक्‍यो ओलंपिक 2020 में गोल्‍ड नहीं जीता उससे पहले सरकार ने उसके लिए कुछ नहीं किया। ऐसा ही हाल बिजिंग ओलंपिक 2008 में 10 मीटर एयर राइफल में गोल्‍ड जीतने वाले अभिनव बिंद्रा व अन्‍य ओलंपिक पदक विजेताओं का रहा है।

भेजने से पहले क्‍यों नहीं करती (India in Olympics)

कीर्ति आजाद ने सरकार से सवाल पूछा था कि ओलंपिक मेडल जीतकर आने के बाद तो सरकार खिलाड़ी के लिए खूब करती है और करना भी चाहिए, मगर ओलंपिक में भेजने से पहले कुछ क्‍यों नहीं करती? अगर पहले ही कुछ करें तो देश को ना जाने कितने ही नीरज चोपड़ा, अभिनव बिंद्रा, पीवी सिंधु व साइना नेहवाल जैसे ओलंपिक से पदक ला सकने वाले खिलाड़ी मिल जाए।

मेडल जीतने की तैयारी अभी से (India in Olympics)

कीर्ति आजाद ने कहा कि भारत में आज भी खिलाड़ियों की स्थिति यह है कि उन्‍हें आने-जाने के लिए वाहन सुविधा तक नहीं मिलती। ट्रेनों के जनरल डिब्‍बे में सफर करने को मजबूर हैं। विश्‍व स्‍तरीय खेल मैदान तक नसीब नहीं होते। खाना व रहने की सुविधा भी ओलंपिक स्‍तर की नहीं। 2028 के ओलंपिक में मेडल जीतने हैं तो उसकी तैयारी अभी से करनी होगी।

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