Khabarwala 24 News New Delhi: India-Pakistan Partition भारत-पाकिस्तान के बीच बंटवारे के दौरान रुपये-पैसे से लेकर तमाम चल-अचल संपत्तियों को लेकर खूब झगड़ा हुआ। जिस चीज को लेकर भारत-पाकिस्तान के बीच सबसे ज्यादा तू-तू मैं-मैं हुई, वो थी वायसराय की घोड़ागाड़ी या बग्घी। इतिहासकार डोमिनिक लापियर और लैरी कॉलिन्स अपनी किताब फ्रीडम ऐट मिडनाइट में लिखते हैं
India-Pakistan Partition कि वायसराय के पास बारह घोड़ागाड़ी थी। ये घोड़ागाड़ी या बग्घी हाथ से गढ़ी सोने और चांदी से बनी थीं। साथ ही तरह-तरह की सजावटों से लैस थीं और इनपर लाल मखमली गद्दियां लगी थीं। एक तरीके से इन घोड़ागाड़ियों में साम्राज्यवादी सत्ता की सारी शान-शौकत नजर आती थी।
बग्गी सोने और चांदी की बनी थी (India-Pakistan Partition)
India-Pakistan Partition भारत के हर वायसराय और हर शाही मेहमान को इन्हीं में से किसी घोड़ागाड़ी पर बिठाकर राजधानी की सड़कों पर घुमाया जाता था। कॉलिन्स और लापियर लिखते हैं कि अंग्रेजी हुकूमत ने ये घोड़ागाड़ी औपचारिक मौकों पर वायसराय की सवारी के लिए खासतौर पर बनवाया था।
India-Pakistan Partition सबसे बड़ी बात यह थी कि इनमें से 6 घोड़ागाड़ी सोने की और 6 चांदी की बनी थी। ऐसे में छह-छह गाड़ियों के सेट को तोड़ना ठीक नहीं था। पहले तय किया गया कि भारत और पाकिस्तान में एक को सोने वाली गाड़ी दे दी जाए और दूसरे को चांदी वाली, लेकिन यह तय नहीं हो पा रहा था कि सोने वाली गाड़ी किसको मिलेगी और चांदी वाली किसके हिस्से जाएगी। दोनों देश अपने लिए सोने वाली घोड़ागाड़ी या बग्घी चाहते थे।
फैसला सिक्का उछालकर हुआ (India-Pakistan Partition)
India-Pakistan Partition कॉलिन्स और लापियर लिखते हैं कि कई दिनों की तोलमोल के बाद जब कोई फैसला नहीं हो पाया तो वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन के ए.डी.सी. लेफ्टिनेंट कमांडर पीटर होज ने सुझाव दिया कि सिक्का उछालकर सन-पुतली के आधार पर इस बात का फैसला किया जाए कि कौन सी गाड़ी किसे मिलेगी।
India-Pakistan Partition उस वक्त वहां पाकिस्तान बॉडीगार्ड के हाल में नियुक्त कमांडर मेजर याकूब खां और वायसराय बॉडीगार्ड के कमांडर मेजर गोविंद सिंह खड़े थे। लेफ्टिनेंट कमांडर पीटर होज का सुझाव मान लिया गया।
सोने वाली बग्घी भारत के खाते में आई (India-Pakistan Partition)
India-Pakistan Partition माउंटबेटन के ए.डी.सी. लेफ्टिनेंट कमांडर पीटर होज ने अपनी जेब से चांदी का एक सिक्का निकाला और उसे हवा में उछाल दिया। सिक्का खनकता हुआ अस्तबल के फर्श पर आ गिरा. तीन आदमी उसे झुककर देखने लगे. मेजर गोविंद सिंह के मुंह से खुशी की चीख निकल गई।
India-Pakistan Partition भाग्य ने फैसला कर दिया था कि सोने की बग्घियां भारत को मिलेंगी और आजाद हिंदुस्तान की सड़कों पर निकला करेंगी। इसके बाद होज ने घोड़ों के साज-सामान, चाबुकों, कोचवानों के जूतों और वर्दियों का भी विभाजन कर दिया कि किस गाड़ी के साथ क्या-क्या सामान जाएगा।
बिगुल अपने साथ ले गए एडीसी (India-Pakistan Partition)
आखिर में सामान के उस पूरे ढेर में एक बिगुल बच गया, जिसकी सहायता से कोचवान अपने घोड़ों को ठीक रास्ते पर रखता था। दिलचस्प बात यह है कि वायसराय के 12 घोड़ागाड़ियों पर सिर्फ एक बिगुल ही था। वायसराय के ए.डी.सी. लेफ्टिनेंट कमांडर पीटर होज फिर सोच में पड़ गए। कुछ देर तो संयम में खड़े रहे। उन्होंने सोचा कि अगर उस बिगुल के दो टुकड़े कर दिए जाएं तो वह फिर कभी बजेगा ही नहीं। ऐसे में उसका निर्णय भी सिक्का उछालकर कर दिया जाए। अचानक होज के दिमाग में कुछ कौंधा।
उन्होंने मेजर याकूब खां और मेजर गोविंद सिंह से कहा कि आप जानते हैं कि इस बिगुल का विभाजन असंभव है। ऐसे में मेरे पास एक ही समाधान है कि इसे मैं अपने पास रख लूं। होज ने मुस्कराकर वह बिगुल अपनी कांख में दबा लिया और घुड़साल से बाहर निकल आए।