Khabarwala 24 News New Delhi : Jagannath Rath Yatra प्रतिवर्ष आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 07 जुलाई 2024 रविवार को यह रथ यात्रा निकलेगी।
विशालकाय रथ में भगवान जगन्नाथ की मूर्ति को विराजमान करके यात्रा निकाली जाती है। वर्ष में जब दो आषाढ़ माह आते हैं तब मूर्ति बदलते हैं। दारु नाम की नीम की लकड़ी से मूर्ति बनाते हैं। मूर्ति के अंदर ब्रह्मा की स्थापना करते हैं जो श्रीकृष्ण का दिल है। आइए जानते हैं कि क्या है जगन्नाथ पुरी की मूर्ति के रहस्य।
प्राचीन मूर्ति का एक लट्ठा आज नई मूर्ति के भीतर स्थापित करते (Jagannath Rath Yatra)
Jagannath Rath Yatra राजा इन्द्रद्युम्न और उनकी पत्नी गुंडिचा देवी के काल में प्रभु जगन्नाथ की मूर्ति बनाने के लिए समुद्र से विशाल लाल वृक्ष का तना निकाला गया। विशालकाय तने को निकालकर उसे रथ के द्वारा उस स्थान पर लाया गया जहां पर श्री नीलमाधव की मूर्ति बनाई गई थी। इसी से मूर्ति बनाई गई थी।
Jagannath Rath Yatra तभी से यह परंपरा जारी है कि मूर्तियों के लिए लकड़ी का चयन करना और फिर उनकी मूर्तियां बनाना। नई मूर्ति बनाने के दौरान प्राचीन मूर्ति का एक लट्ठा आज भी नई मूर्ति के भीतर स्थापित किया जाता है। इसके बारे में कहा जाता है कि यह श्रीकृष्ण का दिल है। जबकि कुछ का मानना है कि यह ब्रह्मा हैं। इस लकड़ी के लट्ठे से एक हैरान करने वाली बात यह भी है कि जब मूर्ति बदलजी जाती है तो उसमें जो लट्ठा भीतर लगाया जाता है उसे आज तक किसी ने नहीं देखा।
पुजारी की आंखों पर पट्टी और हाथ पर कपड़ा ढक दिया जाता (Jagannath Rath Yatra)
Jagannath Rath Yatra मंदिर के पुजारी जो इस मूर्ति को बदलते हैं, उनका कहना है कि उनकी आंखों पर पट्टी बांध दी जाती है और हाथ पर कपड़ा ढक दिया जाता है। इसलिए वे ना तो उस लट्ठे को देख पाए हैं और न ही छूकर महसूस कर पाए हैं। पुजारियों के अनुसार वह लट्ठा इतना सॉफ्ट होता है मानो कोई खरगोश उनके हाथ में फुदक रहा है।
Jagannath Rath Yatra पुजारियों का ऐसा मानना है कि अगर कोई व्यक्ति इस मूर्ति के भीतर छिपे ब्रह्मा को देख लेगा तो उसकी मृत्यु हो जाएगी। मृत्यु के भय की वजह से जिस दिन जगन्नाथ की मूर्ति बदली जानी होती है, उड़ीसा सरकार द्वारा पूरे शहर की बिजली बाधित कर दी जाती है। यह बात आज तक एक रहस्य ही है कि क्या वाकई भगवान जगन्नाथ की मूर्ति में श्रीकृष्ण का दिल रखा जाता है। भगवान जगन्नाथ और अन्य प्रतिमाएं उसी साल बदली जाती हैं जब साल में आसाढ़ के दो महीने आते हैं। अवसर सालों बाद ही आता है।
अलग-अलग हिस्सों से लाए नीम के वृक्षों से तैयार होती प्रतिमाएं (Secret Idol Of Jagannath)
Jagannath Rath Yatra साल पहले प्रतिमाएं बदली गई थीं। ये प्रतिमाएं अलग-अलग हिस्सों से लाए गए नीम के विशेष वृक्षों से तैयार की जाती हैं। इन वृक्षों को विशेष दारू कहा जाता है। भगवान जगन्नाथ का रंग सांवला होता है, इसलिए नीम का वृक्ष उसी रंग का ढूंढा जाता है। भगवान जगन्नाथ के भाई-बहन का रंग गोरा है, इसलिए उनकी मूर्तियों के लिए हल्के रंग के नीम का वृक्ष ढूंढा जाता है। जगन्नाथ की मूर्ति के लिए दारू चुनने के लिए कुछ खास नियमों का ध्यान रखा जाता है।
Jagannath Rath Yatra उसमें 4 प्रमुख शाखाएं होनी चाहिए। वृक्ष के समीप श्मशान, चीटियों की बांबी और जलाशय जरूरी है। वृक्ष के जड़ में सांप का बिल भी होना चाहिए। वह किसी तिराहे के पास हो या फिर तीन पहाड़ों से घिरा होना चाहिए। वृक्ष के समीप वरूण, सहादा और बेल का वृक्ष होना चाहिए।