Khabarwala 24 News New Delhi : Jyotish क्या आप जानते हैं हिंदू धर्म ग्रंथों में हजारों साल पहले ही इस पर विचार किया गया है कि सोने और जागने के नियम का पालन करने से शरीर और मन को कई फायदे होते हैं। चिकित्सकों से तो कई बार सुना होगा कि जीवनशैली दुरुस्त करिये और सोने और जागने का सही नियम बनाइये। लेकिन इन नियमों की अनदेखी आपके लिए भयंकर और खतरनाक हो सकती है।
हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार संध्या का अर्थ दो समयों, जबकि तात्विक दृष्टि से इसका अर्थ जीवात्मा और परमात्मा का मिलन है। इस तरह त्रिकाल संध्या का अर्थ हुआ सुबह, दोपहर 12 बजे और सूर्यास्त के 15 मिनट पहले और 15 मिनट बाद का समय। मान्यता है कि इस समय सुषम्ना नाड़ी का द्वार खुला रहता है, जो कुंडलिनी जागरण और साधना में उन्नति के लिए बहुत जरूरी है। इस त्रिकाल संध्या के समय पूजा, जप, प्राणायाम और ध्यान अत्यंत लाभदायी होता है। इसलिए इस समय का उपयोग इन्हीं कामों में करना चाहिए। साथ ही इन तीनों समयों में पूजन को संध्या पूजन कहा जाता है। इससे मन को शांति मिलती है। आइये जानते हैं त्रिकाल संध्या और इस समय सोने से होने वाला नुकसान क्या है…
समय पूर्व त्रिकाल संध्या का महत्व (Jyotish)
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार नित्य नियमपूर्वक समय पूर्व जागकर त्रिकाल संध्या करने से चित्त की चंचलता समाप्त होती है, धीरे-धीरे एकाग्रता बढ़ती है। भगवान के प्रति आस्था प्रेम, श्रद्धा भक्ति और अपनापन बढ़ता है। मुंह पर तेज, आभा बढ़ती है। कुसंस्कार जलते हैं और विकार समाप्त होते हैं। शरीर स्वस्थ होता है और इस समय किया गया प्राणायाम सर्वरोगनाशक औषधि का कार्य करता है। इसके अलावा प्रातःकालीन संध्या से रात्रि में जाने-अनजाने हुए पाप नष्ट हो जाते हैं, दोपहर संध्या से सुबह से दोपहर के और सायंकालीन संध्या से दोपहर से शाम तक के हुए पाप नष्ट हो जाते हैं। इस प्रकार त्रिकाल संध्या करने वाला व्यक्ति निष्पाप हो जाता है। संध्या से अपार आनंद प्राप्त होता है। इससे हृदय और इंद्रियां स्वस्थ होती हैं और शांति लाभ प्राप्त करती हैं।
संध्या के समय सोने के नुकसान (Jyotish)
और्व मुनि ने राजा सगर से संध्योपासना के फायदे और नुकसान बताए थे। मुनि ने राजा से कहा था कि हे राजन! बुद्धिमान मनुष्य को चाहिए सायंकाल के समय सूर्य के रहते हुए और प्रातःकाल तारागण के चमकते हुए आचमन आदि करके नियम से संध्योपासना करना चाहिए। मुनि के अनुसार जो व्यक्ति बीमारी होने के समय को छोड़कर जो व्यक्ति सूर्योदय या सूर्यास्त के समय सोता है, वह प्रायश्चित का भागी होता है। साथ ही वह व्यक्ति इससे मिलने वाले अद्भुत फायदों से भी वंचित हो जाता है। सूतक (संतान जन्म की अशुचिता), अशौच (मृत्यु से होने वाली अशुचिता), उन्माद, रोग और भय आदि कोई बाधा न हो तो प्रतिदिन संध्योपासना करनी चाहिए। इससे ओज, बल, आरोग्य, धन-धान्य की वृद्धि होती है।