Khabarwala 24 News New Delhi: kanvar yatra 2024 सावन का पवित्र माह शुरू होने के साथ ही कांवड़ यात्रा भी शुरू हो चुकी है। आमतौर पर कांवड़िए गंगा नदी का पवित्र जल लेकर शिवालयों में चढ़ाते हैं। इस दौरान वो करीब 150 किलोमीटर से लेकर 200 किलोमीटर की दूरी तय करते हैं। ये यात्रा कई दिनों की हो जाती है लेकिन इस यात्रा के दौरान वो एक दूसरे का नाम नहीं लेते। चलिए जानते हैं आखिर क्या है इसकी वजह
कांवड़ यात्रा का क्या है इतिहास (kanvar yatra 2024)
कांवड़ यात्रा का इतिहास रामायण काल से माना जाता है। ये माना जाता है कि समुद्र मंथन के बाद जब भगवान शिव ने विष को अपने कंठ पर रोका था तो उनका गला नीला पड़ गया था। उनके शरीर में नकारात्मकता आ गई थी। तब रावण पैदल चलकर गंगा नदी तक पहुंचा और आराधना करके वहां से जल लेकर लौटा। ये जल उसने पुरा महादेव के मंदिर में पवित्र शिवलिंग पर चढ़ाया, जिससे भगवान शिव को नकारात्मकता से मुक्ति मिल सकी।
हर कांवड़ यात्रा के कुछ उसूल होते हैं, जिसका पालन कांवड़िए करते रहे हैं हालांकि नए जमाने और तकनीक ने इसमें बदलाव भी किया है। तो पहले ये जानते हैं कि एक दो दशक पहले जब कांवड़ यात्रा होती थी तो उनके लिए किन नियमों का वो पालन जरूर करते थे ताकि इस यात्रा की पवित्रता बरकरार रहे।
– यात्रा के दौरान ना नशा होगा और ना ही मांस खाया जाएगा
– वाहन का इस्तेमाल नहीं करेंगे. पैदल ही चलेंगे और जमीन पर सोएंगे
– चमड़े की कोई चीज ना तो पास में रखेंगे और ना ही इनका इस्तेमाल करेंगे
– कांवड़ को सिर के ऊपर से नहीं उठाएंगे.
– यात्रा के दौरान लड़ाई नहीं करेंगे, शांति बनाए रखेंगे
– आमतौर पर यात्रा के दौरान कांवड़ यात्री एक दूसरे का नाम नहीं लेते. इसकी क्या वजह है, ये आगे जानेंगे.
इसका कारण ये बताते हैं कि यात्रा के दौरान सभी कांवड़िए भगवान शिव की आराधना करते चलते हैं। उन्हीं को ध्यान में रखते हैं। लिहाजा खुद को शिवमय बनाए रखने के लिए वही नाम लेते हैं जो शिव की आराधना के अनुकूल हो।
कावडि़ए क्यों नहीं लेते आपस में नाम (kanvar yatra 2024)
इसलिए वो कभी यात्रा के दौरान अपने साथियों का नाम नहीं लेते। बल्कि उन्हें बम, भोला या भोली के रूप में बोलकर बुलाते हैं। उनके लिए हर कांवड़ यात्री केवल शिवभक्त होता है, इस वजह से वो उसका नाम नहीं लेते और इसी तरह से एक दूसरे को संबोधित करके एक रिश्ता बनाते हैं।
अलग अलग तरह की होती है कांवड़ यात्रा (kanvar yatra 2024)
बोल बम कांवड़ (kanvar yatra 2024)
ये सबसे कॉमन यात्रा होती है. आमतौर पर ज्यादा कांवड़ यात्री इसी तरह से यात्रा करते हैं.
– इसमें लोग बिना जूते- चप्पल के यात्रा करते हैं.
– थकने पर आराम के लिए बैठ सकते हैं.
– कांवड़ जमीन में नहीं छूना चाहिए इसलिए स्टैंड पर रखते हैं.हालांकि कांवड़ को किसी भी तरह की कांवड़ यात्रा में जमीन पर नहीं रखा जाता, इसके पीछे एक धार्मिक मान्यता है. इसके अनुसार कांवड़ियों का मानना है कि कांवड़ भगवान शिव का स्वरूप है, जिसे कभी भी जमीन में रखकर उसका अपमान नहीं करना चाहिए.
– दोबारा चलने पर कांवड़ के सामने उठक-बैठक करते हैं.
खड़ी कांवड़ (kanvar yatra 2024)
– इसमें लोग खड़ी कांवड़ लेकर चलते हैं
– इसमें कांवड़िए के साथ एक सहयोगी चलता है.
– आराम के वक्त सहयोगी अपने कंधे पर उनकी कांवड़ रखता है.
– सहयोगी को कांवड़ लगातार हिलाते-डुलाते रहना होता है.
झूला कांवड़ (kanvar yatra 2024)
आमतौर पर ये कांवड़ सभी खूब देखी होगी, इसमें कांवड़ को बांस के सहारे बनाया जाता है और इसके दोनों ओर मटके या पात्र में भरकर गंगाजल लाया जाता है.
– आराम करते समय कांवड़ जमीन पर नहीं रखते
– बांस से झूले के आकार की कांवड़ बनाई आती है.
– गंगाजल से भरे पात्र दोनों तरफ बराबरी से लटके होते हैं.
– ऐसे में कांवड़ किसी ऊंची जगह टांग दी जाती है।
डाक कांवड़ (kanvar yatra 2024)
कांवड़ यात्रियों के बीच ये कांवड़ सबसे खास और मुश्किल मानी जाती है. आमतौर पर एक बार कांवड़ लाने का अनुभव ले चुके लोग इस तरह की कांवड़ यात्रा को चुनते हैं.
– इसमें कांवड़िए कहीं नहीं रुकते.
– मंदिरों में इनके लिए विशेष रास्ते बनाए जाते हैं।
– डाक बम कांवड़ियों के कपड़ों का रंग सफेद होता है.
दंडवत कांवड़ (kanvar yatra 2024)
ये सबसे मुश्किल होती है. जिसे हजारों लाखों में अंगुली पर गिनने वाले कांवड़ यात्री ही करते हैं. इसमें घुटना और शरीर छील जाता है. बहुत मुश्किल होती है.
– ये सबसे कठिन कांवड यात्रा मानी जाती है।
– भक्त नदी तट से शिवधाम तक दंडवत होकर यात्रा करते हैं।
– अपने शरीर की लंबाई के बराबर नेटकर नापते हुए यात्रा पूरी करते हैं।
– इस यात्रा में 15 दिन में 30 दिन तक लग जाते हैं।