Thursday, April 17, 2025

Kanwar Yatra 2024 श्रावण मास 22 जुलाई से, सावन में पहली बार करने जा रहे कांवड़ यात्रा, जानें नियम, परंपरा और महत्व

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Khabarwala 24 News New Delhi : Kanwar Yatra 2024 भगवान शिव के भक्त बहुत बेसब्री से श्रावण मास का इंतजार करते हैं। भगवान शिव का प्रिय श्रावण मास 22 जुलाई से शुरू होने वाला है। सावन के पवित्र महीने में कांवड़ यात्रा भी निकाली जाती हैं। इसमें महादेव के भक्त गंगा नदी से जल भरकर लाते हैं और शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं। अपने भक्त की इस अटूट श्रद्धा से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और उन्हें मनोवांछित फल की प्राप्ति का वरदान देते हैं। कांवड़ यात्रा का महत्व और नियम क्या हैं और इसकी शुरुआत कैसे हुई थी…

श्रवण लाए कांवड़ (Kanwar Yatra 2024)

ऐसी मान्यताएं हैं कि सबसे पहले श्रवण कुमार ने त्रेता युग में कांवड़ यात्रा की शुरुआत की थी। अपने दृष्टिहीन माता-पिता को तीर्थ यात्रा कराते समय जब श्रवण कुमार हिमाचल के ऊना में थे तब उनके माता-पिता ने हरिद्वार में गंगा स्नान की इच्छा जाहिर की थी। इस इच्छा को पूरा करने के लिए श्रवण कुमार ने उन्हें कांवड़ में बैठाया और हरिद्वार ले जाकर गंगा स्नान कराया था। वहां से वह अपने साथ गंगाजल भी लाए. तभी से कांवड़ यात्रा की परंपरा चली आ रही है।

कांवड़ के प्रकार (Kanwar Yatra 2024)

झूला कांवड़- महादेव के अधिकांश भक्त झूला कांवड़ लेकर आते हैं। बच्चे, बूढ़े और महिलाएं भी यह कांवड़ आसानी से लेकर आ जाते हैं। इसमें साधक कांवड़ को पेड़ या स्टैंड पर टांगकर आराम कर सकता है।

खड़ी कांवड़- यह झूला कांवड़ से मुश्किल होती है। इसमें साधक कांवड़ को पेड़ या स्टैंड पर टांगकर आराम नहीं कर सकता है। इसके लिए उसे किसी सहयोगी कांवड़िए की सहायता लेनी होगी। जब तक साधक आराम करता है, तब तक सहयोगी उस कांवड़ को कांधे पर लिए रखता है।

डाक कांवड़- डाक कांवड़ सबसे मुश्किल कांवड़ मानी जाती हैं। इसमें भक्तों को एक निश्चित समय के भीतर हरिद्वार से जल लाकर भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं इसलिए कांवड़िये हरिद्वार से जल लेकर दौड़ते हुए शिवालय पहुंचते हैं।

कांवड़ यात्रा नियम (Kanwar Yatra 2024)

कांवड़ यात्रा करने वाले भक्तों को कांवड़िया कहा जाता है। कांवड़ यात्रा पर जाने वाले भक्तों को इस दौरान खास नियमों का पालन करना होता है। इस दौरान भक्तों को पैदल यात्रा करनी होती है। यात्रा के दौरान भक्तों को सात्विक भोजन का सेवन करना होता है। साथ ही आराम करते समय कांवड़ को जमीन पर नहीं बल्कि किसी पेड़ पर लटकाना होता है। अगर आप कांवड़ को जमीन पर रखते हैं तो आपको दोबारा से गंगाजल भरकर फिर से यात्रा शुरू करनी पड़ती है। कांवड़ यात्रा के दौरान भक्तों को नंगे पांव चलना होता है। स्नान के बाद ही कांवड़ को छुआ जाता है। बिना स्नान के कांवड़ को हाथ नहीं लगाया जाता है।

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