Khabarwala 24 News New Delhi: Khasi Community दुनियाभर में सभी धर्मों और जनजातियों के अपने रीति-रिवाज हैं। लेकिन आज हम आपको भारत के एक ऐसे जनजाति के बारे में बताने वाले हैं, जिनके शादी को लेकर रीति रिवाज सबसे अलग हैं। भारत में मेघालय, असम और बांग्लादेश के कुछ इलाकों में ये जनजाति रहने वाली खासी जनजाति है।
बेटे की होती है विदाई (Khasi Community)
बता दें कि खासी जनजाति में शादी को लेकर रीति-रिवाज बिल्कुल अलग है। यहां पर शादी के वक्त बेटों को बेटियों के मुकाबले ज्यादा अहमियत दी जाती है। जैसे सभी धर्मों और परिवारों में अक्सर बेटियों को पराया धन कहा जाता है। इसका कारण ये है कि शादी के बाद दुल्हन की विदाई की जाती है। लेकिन खासी जनजाति में इसके उलट शादी के वक्त बेटे की विदाई की जाती है.
किसे मिलती है ज्यादा सम्पत्ति (Khasi Community)
खासी जनजाति में शादी के बाद लड़के लड़कियों के साथ ससुराल जाते हैं। आसान भाषा में कहा जाए तो लड़कियां जीवनभर अपने माता-पिता के साथ रहती है, जबकि लड़के अपना घर छोड़कर ससुराल में घर जमाई बनकर रहते हैं। इसे खासी जनजाति में अपमान की बात नहीं माना जाता है। इसके अलावा खासी जनजाति में बाप-दादा की जायदाद लड़कों के बजाय लड़कियों को मिलती है। एक से ज्यादा बेटियां होने पर सबसे छोटी बेटी को जायदाद का सबसे ज्यादा हिस्सा मिलता है। वहीं खासी समुदाय में सबसे छोटी बेटी को विरासत का सबसे ज्यादा हिस्सा मिलने के कारण उसे ही माता-पिता, अविवाहित भाई-बहनों और संपत्ति की देखभाल करनी पड़ती है।
कई शादी करने की महिलाओं को छूट (Khasi Community)
खासी जनजाति में महिलाओं को कई शादियां करने की छूट मिली हुई है। हालांकि यहां के पुरुषों ने कई बार इस प्रथा को बदलने की मांग की है। उनका कहना है कि वे महिलाओं को नीचा नहीं दिखाना चाहते और ना ही उनके अधिकार कम करना चाहते हैं। लेकिन वे अपने लिए बराबरी का अधिकार चाहते हैं। खासी जनजाति में परिवार के सभी छोटे-बड़े फैसलों में महिलाओं का होता है। इसके अलावा इस समुदाय में छोटी बेटी का घर हर रिश्तेदार के लिए हमेशा खुला रहता है। छोटी बेटी को खातडुह कहा जाता है। मेघालय की गारो, खासी, जयंतिया जनजातियों में मातृसत्तात्मक व्यवस्था होती है। इसलिए इन सभी जनजातियों में एक जैसी व्यवस्था होती है।
शादी तोड़ना भी काफी आसान (Khasi Community)
इसके अलावा खासी समुदाय में विवाह के लिए कोई खास रस्म नहीं होती है। लड़की और माता पिता की सहमति होने पर लड़का ससुराल में आना-जाना तथा रुकना शुरू कर देता है। इसके बाद संतान होते ही लड़का स्थायी तौर पर अपने ससुराल में रहना शुरू कर देता है। कुछ खासी लोग शादी करने के बाद विदा होकर लड़की के घर रहना शुरू कर देते हैं। शादी से पहले बेटे की कमाई पर माता-पिता का और शादी के बाद ससुराल पक्ष का अधिकार होता है। वहीं शादी तोड़ना भी यहां काफी आसान होता है। लेकिन तलाक के बाद संतान पर पिता का कोई अधिकार नहीं होता है।
बच्चों के नाम के साथ मां का नाम (Khasi Community)
आपको बता दें कि खासी समुदाय में बच्चों का उपनाम भी मां के नाम पर रखा जाता है। कुछ लोगों का कहना है कि काफी पहले इस समुदाय के पुरुष युद्ध पर चले गए थे। जिसके बाद पीछे महिलाएं घरों में रह गई थी। इस वजह से महिलाओं ने अपने बच्चों को अपना नाम दे दिया था। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि ये परंपरा इसलिए शुरू हुई थी क्योंकि खासी महिलाओं के कई जीवनसाथी होते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि बच्चे का पिता कौन है? इस कारण महिलाओं ने बच्चों को पिता की जगह अपने सरनेम देना शुरू कर दिया था।