Khabarwala 24 News New Delhi : Khatu Shyam Temple बाबा श्याम को कलयुग का अवतार माना जाता है। श्याम को हारे का सहारा भी कहा जाता है। हर साल लाखों भक्त बाबा श्याम के दरबार में शीश निवाणे आते हैं। महाभारत में उल्लेख है कि भीम के पुत्र घटोत्कच थे और उनके पुत्र बर्बरीक थे। बर्बरीक देवी माँ के भक्त थे। बर्बरीक की तपस्या और भक्ति से प्रसन्न होकर देवी माँ ने उन्हें तीन बाण दिये, जिनमें से एक से वह संपूर्ण पृथ्वी को नष्ट कर सकते थे लेकिन, क्या आप जानते हैं कि बाबा श्याम कौन हैं… और खाटूश्याम जी में बाबा श्याम का मंदिर क्यों बनाया गया है… जो पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है।
युद्ध में पांडवों पर भारी पड़ जायेंगे कौरव (Khatu Shyam Temple)
जब महाभारत का युद्ध चल रहा था तो बर्बरीक ने अपनी मां हिडिम्बा को युद्ध लड़ने का प्रस्ताव दिया। तब बर्बरीक की माँ ने सोचा कि कौरवों की सेना बड़ी है और पांडवों की सेना छोटी है, इसलिए शायद कौरव युद्ध में पांडवों पर भारी पड़ जायेंगे। तब हिडिम्बा ने कहा कि तुम हारने वाले पक्ष की ओर से लड़ोगे। इसके बाद माता की आज्ञा मानकर बर्बरीक लोग महाभारत के युद्ध में भाग लेने के लिए निकल पड़े।
भगवान कृष्ण को दान किया अपना शीश (Khatu Shyam Temple)
लेकिन, श्री कृष्ण जानते थे कि बर्बरीक युद्ध स्थल पर पहुँच गए तो वे कौरवों की ओर से युद्ध लड़ेंगे। भगवान कृष्ण ने एक ब्राह्मण का रूप धारण किया और बर्बरीक के पास पहुंचे। तब भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उसका शीश दान में मांग लिया। बर्बरीक ने दान स्वरूप अपना शीश बिना किसी प्रश्न के भगवान कृष्ण को दान कर दिया। इस दान के कारण श्री कृष्ण ने कहा कि कलयुग में तुम मेरे नाम से पूजे जाओगे। कलयुग में तुम श्याम के नाम से पूजे जाओगे। तुम कलयुग के अवतार कहलाओगे और हारे का सहारा बनोगे।
खाटू में 1974 में लुप्त हो गई गर्भवती नदी (Khatu Shyam Temple)
जब घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक ने अपना शीश भगवान श्री कृष्ण को दान में दे दिया तो बर्बरीक ने महाभारत का युद्ध देखने की इच्छा व्यक्त की तब श्री कृष्ण ने बर्बरीक का शीश एक ऊँचे स्थान पर रख दिया। तब बर्बरीक ने संपूर्ण महाभारत युद्ध देखा। युद्ध की समाप्ति के बाद भगवान कृष्ण ने बर्बरीक का सिर गर्भवती नदी में फेंक दिया। इस प्रकार बर्बरीक यानि बाबा श्याम का शीश गर्भवती नदी से खाटू (उस समय खाटुवांग शहर) में आ गया। आपको बता दें कि खाटूश्यामजी में गर्भवती नदी 1974 में लुप्त हो गई थी।
फाल्गुन माह की ग्यारस प्राप्त हुआ था शीश (Khatu Shyam Temple)
स्थानीय लोगों के अनुसार, पीपल के पेड़ के पास एक गाय प्रतिदिन अपने आप दूध देती थी। ऐसे में जब लोगों ने उस स्थान की खुदाई की तो वहां से बाबा श्याम का सिर निकला। बाबा श्याम का यह शीश फाल्गुन माह की ग्यारस को प्राप्त हुआ था इसलिए बाबा श्याम का जन्मोत्सव भी फाल्गुन माह की ग्यारस को मनाया जाता है। खुदाई के बाद ग्रामीणों ने बाबा श्याम का सिर चौहान वंश की नर्मदा देवी को सौंप दिया। इसके बाद नर्मदा देवी ने बाबा श्याम को गर्भ गृह में स्थापित कर दिया और जिस स्थान पर बाबा श्याम को खोदा गया था, वहां पर एक श्याम कुंड बनाया गया।