Khabarwala 24 News New Delhi : Lakshman Vardaan Katha सोना हमारी दिनचर्या का एक जरूरी हिस्सा है। अच्छी नींद के बिना अच्छे स्वास्थ्य की भी कल्पना नहीं की जा सकती। कोई भी व्यक्ति अधिक दिनों तक सोए बिना नहीं रह सकता। लेकिन पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, लक्ष्मण जी पूरे वनवास के दौरान यानी 14 वर्षों तक नहीं सोए। चलिए जानते हैं कि उन्हें यह वरदान किस प्रकार मिला।
कैसे हुई उत्पत्ति (Lakshman Vardaan Katha)
मार्कंडेय पुराण में निद्रा देवी की उत्पत्ति की कथा मिलती है, जिसके अनुसार, निद्रा देवी की उत्पत्ति सृष्टि की रचना से भी पहले हुई थी। कथा के अनुसार, जब भगवान विष्णु योग निद्रा में थे और चारों तरफ जल ही जल था, तब भगवान विष्णु की नाभि से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई।
विष्णु योग निद्रा में (Lakshman Vardaan Katha)
इस दौरान विष्णु जी के कान के मैल से मधु और कैटभ नामक दो राक्षस भी पैदा हुए जो ब्रह्मा जी को खाने के लिए दौड़ पड़े। तब ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु से मदद मांगी, लेकिन भगवान विष्णु योग निद्रा में थे।
नेत्रों से योगमाया (Lakshman Vardaan Katha)
तब ब्रह्मा जी ने योगमाया की स्तुति की, जिससे विष्णु जी के नेत्रों से योगमाया उत्पन्न हुई। इस कारण भगवान विष्णु निद्रा से जाग गए और उन्होंने राक्षसों का वध कर ब्रह्मा जी के प्राण बचाए। इन्हीं योगमाया को निद्रा देवी के नाम से जाना जाता है।
लक्ष्मण को वरदान (Lakshman Vardaan Katha)
माना जाता है कि जब भगवान, राम लक्ष्मण और सीता जी वनवास को गए, तब वनवास की पहली रात्रि लक्ष्मण जी के सपने में उन्हें निद्रा देवी के दर्शन हुए। उन्होंने लक्ष्मण जी से कोई एक वरदान मांगने को कहा।
पहरेदारी कर सकें (Lakshman Vardaan Katha)
तब लक्ष्मण जी ने वरदान के रूप में मांगा कि उन्हें वनवास के दौरान यानी 14 वर्षों तक नींद न आए, ताकि वह राम और सीता जी की पहरेदारी कर सकें। इसके बदले में निंद्रा देवी ने लक्ष्मण के बदले की नींद उनकी पत्नी उर्मिला को दे दी।
क्या है मान्यता (Lakshman Vardaan Katha)
ऐसा कहा जाता है कि यदि निद्रा देवी किसी से प्रसन्न हो जाएं, तो उसे सपने में भविष्य की घटनाओं को देखने की शक्ति मिल जाती है। साथ ही यह भी माना जाता है कि निद्रा देवी का मंत्र जाप करने से व्यक्ति को गहरी नींद आती है और बुरे सपने भी नहीं सताते।
निद्रा देवी का मंत्र (Lakshman Vardaan Katha)
अगस्तिर्माघवशचैव मुचुकुन्दे महाबलः
कपिलो मुनिरास्तीक: पंचैते सुखशाायिनः
वाराणस्यां दक्षिणे तु कुक्कुटो नाम वै द्विजः
तस्य स्मरणमात्रेण दु:स्वपन: सुखदो भवेत्