Sunday, July 7, 2024

Lord Sitaram Marriage आज भी शुभ नहीं मानते मिथिला के लोग, पति पत्नी में रहा अलगाव, संतान सुख से वंचित रहे राम

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Khabarwala 24 News Noida : Lord Sitaram Marriage राम भगवान 500 सालों के इंतजार के बाद घर वापसी कर रहे हैं। सीता राम के हर पक्ष की बात हो रही है। माता सीता के मायके और ससुराल पक्ष की बात हो रही है। मिथिला प्रदेश में लोग भगवान राम की शादी को अशुभ मानते हैं. क्योंकि जिस तरह से शादी के बाद राम भगवान के जीवन में अस्थिरता रही वो सबके सामने है।

सीता को दुख झेलना पड़ा। उनके साथ साथ उनकी बहनों और राजा जनक को भी दुख झेलना पड़ा। आप सोचकर देखिये न कि किसी परिवार का लड़का वनवास काट रहा हो वो भी बिना किसी गलती के उसके साथ-साथ किसी की बेटी भी दुख झेल रही हो। आप यह जानकर चौंक जाएंगे कि आज भी मिथिला में माता सीता के कठिन जीवन को लेकर लोग शोक व्यक्त करते हैं। भले ही राम सीता को लोग पूजते हैं लेकिन उनके विवाह को मिथिला के लोग अशुभ मानते हैं। उस दिन भारत और नेपाल की काफी बड़ी आबादी विवाह पंचमी के दिन अपने बच्चों की शादी नहीं कराते तो आज हम आपको इसी प्रथा के बारे में बताने जा रहे हैं।

मिथिला के लोक कथाओं में शादी का जिक्र (Lord Sitaram Marriage)

वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस के अनुसार मिथिला प्रदेश (बिहार का उत्तरी क्षेत्र और नेपाल का कुछ दक्षिणी भाग) राजा जनक का राज्य हुआ करता था। उस क्षेत्र में आज भी भगवान राम को जमाई और माता सीता को बेटी के रूप में माना जाता है। आज भी जब वहां जब लोगों की शादी होती है तो वो भगवान राम और सीता की तरह वर वधु चाहते हैं, लेकिन वो विवाह पंचमी के दिन को शादी के लिए अशुभ मानते हैं। मिथिला के लोग मानते हैं कि भगवान राम के जीवन में कष्ट ज्यादा रहा, वैवाहिक संबंध खराब रहे। त्रेता युग में पूरे मिथिला प्रदेश में अकाल पड़ा था, जो माता सीता के उत्न्न होने के बाद खत्म हो गया था, इसलिए वैदेही पूरे राज्य को प्रिये थी।

सीता राम की शादी हुई थी अशुभ दिन में? (Lord Sitaram Marriage)

राम भगवान की शादी ‘विवाह पंचमी’ के दिन हुई थी। उनके विवाह में कर्मकांड गौतम ऋषि के पुत्र ऋषि सच्चिदानंद ने कराया था। मिथिला लोककथा के अनुसार भगवान राम की शादी 16 वर्ष की उम्र में हुई थी। विवाह पंचमी मार्गशीर्ष (दिसंबर) के महीने में शुक्ल पक्ष के पांचवें दिन मनाया जाता है। शादी के बाद राम भगवान की शादी के बाद से ही उनका जीवन अशांत रहा। विवाह के दिन भी उनके सामने परशुराम के रूप में कलह आया था। उसके बाद से ही भगवान राम और सीता का जीवन कष्टपूर्ण रहा। मिथिला के लोक कथाओं में आज भी राम सीता के शादी का जिक्र होता है।

भूमि से उत्पन्न होने के कारण नाम पड़ा भूमिजा (Lord Sitaram Marriage)

शादी के बाद वनवास जाना पड़ा। वनवास के दौरान माता सीता और राम को एक दूसरे से अलग रहना पड़ा। रावण के युद्ध के बाद जब वो अयोध्या आए तो फिर राम भगवान ने उन्हें महर्षि वाल्मीकि के आश्रम भेज दिया। वहीं पर लव कुश का जन्म हुआ। राम भगवान संतान सुख से वंचित रहे और पुत्र से युद्ध की स्थिति उत्पन्न हुआ, परिणाम हुआ कि भूमिजा ( भूमि से उत्पन्न होने के कारण सीता को भूमिजा कहा जाता है) धरती में समा गई थी। तबसे अब तक मिथिला क्षेत्र में विवाह पंचमी यानी मार्गशीर्ष (दिसंबर) के महीने में शुक्ल पक्ष के पांचवें दिन उत्सव तो मनाया जाता है लेकिन बच्चों की शादी लोग नहीं करते हैं।

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