Friday, November 22, 2024

Maa Brahmacharini नवरात्रि के दूसरे दिन होती है मां ब्रह्मचारिणी की पूजा, जानें पूजा विधि और पौराणिक कथा

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Khabarwala 24 News New Delhi : Maa Brahmacharini आज यानी 10 अप्रैल को चैत्र नवरात्रि का दूसरा दिन है। नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है। मां ब्रह्मचारिणी ध्यान, ज्ञान और वैराग्य की अधिष्ठात्री देवी हैं। मां ब्रह्मचारिणी का उद्भव ब्रह्मा के कमंडल से माना जाता है। कठोर साधना और ब्रह्म में लीन रहने के कारण इनको ब्रह्मचारिणी कहा जाता है। मां ब्रह्मचारिणी सरल स्वभाव वाली और दुष्टों को रास्ताी दिखाने वाली हैं। चलिए आपको मां ब्रह्मचारिणी की पूजन विधि, महत्व और उनसे जुड़ी पौराणिक कथा बताते हैं।

कैसा है मां ब्रह्मचारिणी का रूप (Maa Brahmacharini)

मां ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में जप की माला होती है और बाएं हाथ में कमंडल होता है, जो भक्त माता के इस स्वरूप की पूजा करते हैं, वो जीवन के कठिन समय में भी संघर्ष से विचलित नहीं होते हैं। भक्तों में त्याग, सदाचार, संयम की बढ़ोतरी होती है। देवी का मंदिर वाराणसी के कर्णघंटा क्षेत्र के सप्तसागर मोहल्ले में है।

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि (Maa Brahmacharini)

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करते समय पीले या सफेद वस्त्र धारण करने चाहिए। माता को सफेद वस्तुएं बहुत प्रिय हैं, इसलिए उनको सफेद वस्तुएं जैसे मिसरी, शक्कर अर्पित करना चाहिए। मां ब्रह्मचारिणी के लिए ‘ॐ ऐं नम:’ का जाप करना चाहिए। मां ब्रह्मचारिणी का पूजन मिथुन और कन्या राशि के लिए विशेष फलदायी है।

पूजा का शुभ मुहूर्त (Maa Brahmacharini)

नवरात्रि में मां ब्रह्मचारिणी की पूजा के लिए अभिजीत मुहूर्त दोपहर 11 बजकर 57 मिनट से 12 बजकर 48 मिनट तक है. जबकि विजय मुहूर्त दोपहर 2 बजकर 30 मिनट से 3 बजकर 21 मिनट तक है।

ये रही पौराणिक कथा (Maa Brahmacharini)

मां ब्रह्मचारिणी ने हिमालय के घर पुत्री के रूप में जन्म लिया था। इसके बाद उन्होंने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की। पौराणिक कथा के मुताबिक मां ब्रह्मचारिणी ने एक हजार साल तक सिर्फ फल-फूल खाकर तपस्या की और 100 साल तक सिर्फ जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया।

उन्होंने बारिश, धूप की परवाह किए बिना तपस्या की। कई सालों तक उन्होंने टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शिव के लिए तपस्या करती रहीं। इसके बाद उन्होंने निर्जल और निराहार रहकर तपस्या की। इस तपस्या से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया।

माता की तपस्या को देखकर ब्रह्माजी ने कहा कि देवी, आपकी मनोकामना पूरी होगी। जल्द ही भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हे पति के रूप में प्राप्त होंगे। अब तुम तपस्या से विरत होकर घर लौट जाओ। इसके बाद मां ब्रह्मचारिणी घर लौट गईं। इसके कुछ दिनों बाद उनका विवाह महादेव शिव के साथ हो गया।

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