Khabarwala 24 News New Delhi : Manmohan Singh ‘गाह’ के मोहना नहीं रहे… बड़े पेड़ के नीचे गिल्ली-डंडा, कंचे और कबड्डी खेलते उनके बचपन के दोस्त उन्हें इस नाम से ही पुकारते थे। जब वह सन् 1932 में ब्रितानी भारत के ज़िला झेलम के गांव में कपड़े के दुकानदार गुरमुख सिंह और उनकी पत्नी अमृत कौर के यहां पैदा हुए तो उनका नाम मनमोहन सिंह रखा गया था।
अब यह गांव पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद से 100 किलोमीटर दक्षिण पूर्व में स्थित ज़िला चकवाल का हिस्सा है। जब 2004 में मनमोहन सिंह भारत के प्रधानमंत्री बने और अगले दस साल इसी पद पर रहे और कई आर्थिक सुधार किए तो उनके गांव के साथी शाह वली और राजा मोहम्मद अली के दिलों में उनके साथ गुज़ारे दिनों की यादें हिलोरे मारने लगीं। स्कूल रजिस्टर में मनमोहन सिंह का नंबर 187 था, पिता का नाम गुरमुख सिंह, जाति (पंजाबी खत्री) कोहली, पेशा- दुकानदार और एडमिशन की तारीख़ 17 अप्रैल 1937 दर्ज है। मनमोहन सिंह ने कैंब्रिज और फिर ऑक्सफ़र्ड जाने से पहले भारत में अर्थशास्त्र की शिक्षा प्राप्त की थी।
‘मैं आज जो कुछ हूं, शिक्षा की वजह से ही हूं’ (Manmohan Singh)
समाजशास्त्र विशेषज्ञ जॉर्ज मैथ्यू साल 2004 में ही गाह गए थे। ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ के अनुसार 1 अप्रैल 2010 को असाधारण तौर पर भावनात्मक राष्ट्रीय संबोधन में सिंह ने कहा कि उन्होंने मिट्टी के तेल के चिराग़ की रोशनी में पढ़ाई की। कांपती आवाज़ में उन्होंने कहा, “मैं आज जो कुछ हूं, शिक्षा की वजह से ही हूं।” गांव में मनमोहन सिंह के दोस्त शाह वली ने जॉर्ज मैथ्यू को बताया कि दो कच्चे कमरों का स्कूल था। शाह वली का कहना था, “हमारे उस्ताद दौलत राम और हेड मास्टर अब्दुल करीम थे। बच्चियां और बच्चे इकट्ठे पढ़ते थे।”
क्लास के मॉनिटर थे और हम इकट्ठे खेलते थे (Manmohan Singh)
‘ट्रिब्यून पाकिस्तान’ में छपे एक लेख के अनुसार उनके दोस्त ग़ुलाम मोहम्मद ख़ान ने एएफ़पी को बताया था, “मोहना हमारे क्लास के मॉनिटर थे और हम इकट्ठे खेलते थे।” उनका कहना था, “वह एक शरीफ़ और होनहार बच्चा था। हमारे उस्ताद ने हमेशा हमें सलाह दी कि अगर हम कुछ समझ न पाएं तो उनकी मदद हासिल करें।” चौथी क्लास पास करने के बाद मनमोहन अपने घर वालों के साथ अपने गांव से 25 किलोमीटर दूर चकवाल चले गए और 1947 में ब्रितानी हिंदुस्तान के भारत और पाकिस्तान विभाजन से कुछ समय पहले अमृतसर चले गए।
पगड़ी और कढ़ाई वाली शॉल तोहफ़े में मिली (Manmohan Singh)
उनके गांव के दोस्त शाह वली उन्हें फिर कभी न मिल सके। अलबत्ता मनमोहन सिंह की दावत पर उनके बचपन के दोस्त राजा मोहम्मद अली सन 2008 में उनसे मिले थे। बाद में सन 2010 में राजा मोहम्मद अली की मौत हो गई थी। ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ के अनुसार राजा मोहम्मद अली ने ‘मोहना’ को शॉल, चकवाली जूती और गांव की मिट्टी और पानी दिया और बदले में उन्हें पगड़ी और कढ़ाई वाली शॉल तोहफ़े में मिली। सत्ता संभालने के कुछ ही समय बाद मनमोहन सिंह ने पाकिस्तान के उस समय के शासक जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ को ख़त लिखा जिसमें कहा गया कि ‘गाह’ की तरक़्क़ी के लिए कोशिश की जाए।
गाह के दोस्तों का इंतज़ार और अधूरी ख़्वाहिश (Manmohan Singh)
साल 1991 में जब वह भारत के वित्त मंत्री बने तो अर्थव्यवस्था तबाही के कगार पर थी मगर फिर 2007 तक भारत ने अपनी सर्वोच्च जीडीपी की दर हासिल कर ली। गाह गांव में मनमोहन सिंह के दूसरे दोस्त इंतज़ार कर रहे थे कि कब वह पाकिस्तान का दौरा करें और वह उनसे मिलें क्योंकि उन्होंने पाकिस्तान आने की दावत तो क़बूल कर ली थी, मगर किसी वजह से वह जा न सके। उन्हें ‘मोहना’ के आने की उम्मीद इसलिए भी थी कि मनमोहन सिंह की पत्नी गुरशरण सिंह का परिवार भी विभाजन से पहले पंजाब के ज़िला झेलम के गांव ढक्कू में रहता था।
बातचीत न होना एशिया के विकास में रुकावट (Manmohan Singh)
भारत और पाकिस्तान के नेताओं का अजब रवैया होता है। मिलना हो तो बहाना ढूंढ लेते हैं, न मिलना हो तो पास से गुज़रते हुए भी एक-दूसरे से आंख नहीं मिलाते। साउथ एशियन एसोसिएशन फ़ॉर रीजनल कोऑपरेशन (सार्क) का सोलहवां शिखर सम्मेलन 2010 में भूटान में हुआ था। मैं दक्षिण एशिया के पत्रकारों की एक कॉन्फ़्रेंस में शामिल होने के लिए वहीं पर मौजूद था। ‘सार्क’ के दूसरे देश समझते हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद का होना और बातचीत न होना दक्षिण एशिया के विकास में रुकावट है और अपनी इन भावनाओं का उन्होंने बैठक में खुलकर इज़हार किया।
पुरानी, देहाती लेकिन प्रभावी भूटानी कोशिश थी (Manmohan Singh)
शायद इसीलिए शिखर सम्मेलन के मेज़बान भूटान ने राजधानी थिम्पू के ‘सार्क’ विलेज में भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यूसुफ़ रज़ा गिलानी को हिमालय की ख़ुशगवार पहाड़ी हवा के बीच दो मंज़िला विला में पड़ोसी बनाया। शायद उन्हें उम्मीद थी कि आते-जाते वह दोनों दिन में किसी वक़्त एक दूसरे से हाल-चाल पूछ ही लेंगे। थिम्पू के एक टैब्लॉयड ‘भूटान टुडे’ के अनुसार सिंह और गिलानी को कम से कम पड़ोसियों की तरह मिलने पर मजबूर करने के लिए यह पुरानी, देहाती लेकिन प्रभावी भूटानी कोशिश थी।
विश्वास बहाल करने को बातचीत के रास्ते खुले (Manmohan Singh)
लेकिन दोनों प्रधानमंत्रियों ने यह कोशिश नाकाम कर दी। जिन्हें नहीं मिलना था। वे नहीं मिले। यहां तक कि ‘सार्क’ देशों के राष्ट्राध्यक्षों को एक दिन कहना पड़ा कि ढलते सूरज में वह दोनों एक तरफ़ होकर टहल लें फिर ‘सार्क’ प्रेस रिलीज़ के अनुसार उनकी ज़िद पर पाकिस्तान और भारत के प्रधानमंत्रियों ने सार्क विलेज में एक साथ चहलक़दमी की और बातचीत भी की। बहरहाल, फिर मनमोहन सिंह और गिलानी की मुलाक़ात हुई जहां उन्होंने विश्वास बहाल करने के लिए बातचीत के रास्ते खुले रखने का फ़ैसला किया।
दोनों रिश्तों को सुधारने का मंसूबा पूरा नहीं हुआ (Manmohan Singh)
भारत-पाकिस्तान रिश्तों को सुधारने का मंसूबा पूरा नहीं हुआ। उस समय विपक्षी भारतीय जनता पार्टी ने सिंह की कांग्रेस सरकार पर पाकिस्तान के बारे में नरम रवैया अपनाने का आरोप लगाया। जनवरी में अपनी अलविदाई प्रेस कॉन्फ़्रेंस में मनमोहन सिंह ने यह बताया कि उनकी सरकार परवेज़ मुशर्रफ़ सरकार से कश्मीर पर शांति समझौता करने के बहुत नज़दीक पहुंच चुकी थी लेकिन फिर 2008 में मुंबई में आतंकवादी हमले हो गए। सिंह की राय थी कि अगर भारत को अपनी आर्थिक इच्छाओं को पूरा करना है तो उसके लिए कश्मीर समस्या को हल करना होगा।
एक दूसरे से बिना रुकावट आठ घंटे बातचीत की (Manmohan Singh)
मुशर्रफ़ के बाद आने वाले राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी से मनमोहन सिंह की मुलाक़ात न्यूयॉर्क में हुई। साल 2011 में उस समय के पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यूसुफ़ रज़ा गिलानी को पंजाब के शहर मोहाली में क्रिकेट वर्ल्ड कप का मैच देखने की दावत दी गई। पत्रकार अभीक बर्मन ने लिखा कि भारत ने क्रिकेट में पाकिस्तान को हरा दिया लेकिन एक और मैदान ‘क्रिकेट डिप्लोमैसी’ में भारत और पाकिस्तान दोनों ही जीते हुए हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और उनके पाकिस्तानी समकक्ष यूसुफ़ राजा गिलानी ने क्रिकेट मैच और डिनर के दौरान एक दूसरे से बिना रुकावट आठ घंटे बातचीत की।
साल 2012 में स्वतंत्र वीज़ा समझौते पर हस्ताक्षर (Manmohan Singh)
साल 2012 में उस समय के भारतीय विदेश मंत्री एसएम कृष्णा और पाकिस्तानी विदेश मंत्री रहमान मलिक ने स्वतंत्र वीज़ा समझौते पर हस्ताक्षर किए जिससे दोनों तरफ़ के लोगों के लिए वीज़ा हासिल करना आसान हो गया। उसी साल पंजाब और बिहार के राज्यों के भारतीय राजनेताओं के एक शिष्टमंडल ने भी पाकिस्तान का दौरा किया। वर्ष 2013 में मनमोहन और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेंबली के मौके पर न्यूयॉर्क में मिले। दोनों ने एक-दूसरे के देशों के दौरे की दावत भी क़बूल की। उसी साल मई में नवाज़ के पीएम चुने जाने के बाद उनकी पहले आमने-सामने की मुलाक़ात थी।