Navratri Special Khabarwala 24 News Hapur : सनातन हिन्दू धर्म में देवी पूजन आस्था-उपासना के प्रमुख पर्व नवरात्रि की शुरुआत 15 अक्टूबर दिन रविवार से हो रही है। 9 दिनों तक मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की पूजा अर्चना की जाती है।
जिसमें पहले दिन माँ शैलपुत्री, दूसरी ब्रह्मचारिणी, तीसरी चंद्रघंटा, चौथी कुष्मांडा, पंचम स्कंद माता, छष्ठम कात्यायनी, सप्तम कालरात्रि, अष्टम महागौरी, नवमीं सिद्धिदात्री देवी के पूजन के साथ इस त्यौहार का समापन 24 अक्टूबर दिन मंगलवार को विसर्जन के साथ होगा। इस बार के नवरात्रि में कोई भी तिथि के क्षय या वृद्धि ना होने के कारण अत्यंत शुभ प्रदान करने वाला होगा। श्रद्धालु पूर्ण भक्तिभाव से मां दुर्गा की पूजा कर मां की कृपा प्राप्त करेंगे। कलश स्थापना के लिए मिट्टी का घड़ा उत्तम रहता है।
स्थापना व पूजन के लिए कलश के साथ पंचपल्लव या आम के पत्ते का पल्लव, नारियल, कलावा, रोली, सुपारी, गंगाजल, सिक्का, दूर्वा, गेहूं और अक्षत (चावल), हल्दी, पान के पत्ते, कपूर, लौंग, जावित्री, इलायची, धूप, देशी घी, गाय का दूध, जोतबत्ती, हवन सामग्री, श्रृंगार का सामान, फल, मिष्ठान आदि सामान की आवश्यकता होती है.
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घट स्थापना का शुभ मुहूर्त :-
सुबह 8.55 से 11.14 स्थिर लग्न
लाभ की चौघड़िया
सुबह 10.38 से 12.27 अमृत चौघड़िया व अभिजीत मुहूर्त
दोपहर 1.30 से दोपहर बाद 3 तक शुभ की चौघड़िया
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हाथी पर सवार होकर आएंगी मां
सभी जानते है कि माँ दुर्गा की सवारी सिंह है, लेकिन देवी भागवत पुराण में वर्णन है कि नवरात्रि में दिन के अनुसार मां का आगमन व प्रस्थान अलग अलग वाहन पर होता है वर्णन श्लोक है शशिसूर्ये गज़रूढ़ा शशिभौमे तुरंगमे,गुरौशुक्रेच दौलयां बुधे नौका प्रकीर्तिता। इस बार नवरात्रि रविवार से शुरू होने के कारण माता का आगमन हाथी की सवारी पर होगा, जो अच्छी वर्षा होने का संकेत है। इससे धन-धान्य में वृद्धि होगी माता का प्रस्थान दिन मंगलवार होने से मुर्गा पर सवार होकर जाएगी, जो भविष्य में शोक व दुःख होने का संकेत है।
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नौ दिन अलग-अलग वस्तु से पूजा करने का विधान
देवी भागवत पुराण व दुर्गासप्तसती में पूरे 9 दिन अलग अलग वस्तुओं से पूजन का विधान कहा गया है। कलश स्थापना करने वाले को दुर्गासप्तसती का नित्य पाठ स्वयं या योग्य ब्राह्मण से करवाना चाहिए। पूरे 9 दिन तक व्रत अवश्य करना चाहिए। प्रतिदिन एक कन्या को खिलाते हुए वृद्धि करते हुए 9वें दिन नौ कन्याओं को खिलाना चाहिए। अगर ये संभव ना हो तो नवमी को 9 कुमारी कन्यापूजन कर भोजन कराए, धर्मग्रंथो के अनुसार कन्या की उम्र 2 वर्ष से कम या दस वर्ष से अधिक नहीं होना चाहिए। दशमी 24 अक्टूबर मंगलवार को विसर्जन के बाद पारण करना चाहिए। तभी पूर्ण शुभ फल की प्राप्ति होती है जो लोग 9 दिन का व्रत नहीं कर सकते है वह श्रद्धा भाव से प्रथम दिन व अष्टमी के दिन अथवा सप्तमी, अष्टमी व नवमी तीन दिन का व्रत रख कर मां की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।