Khabarwala 24 News New Delhi : New Study on Plastic, reveals this shocking thing नये चौंकाने वाले शोध में पाया गया है कि मानव मस्तिष्क पर धीरे धीरे प्लास्टिक की परत चढ़ रही है। इसका सीधा मतलब है कि हमारे आसपास मौजूद हवा, पानी, भोजन ही नहीं हमारे शरीर के विभिन्न अंगों में भी प्लास्टिक पहुंच चुका है। हो सकता है, आप यह खबर तब पढ़ रहे हों, जब आपके हाथ में पानी की बोतल हो। हो सकता है आपने अभी-अभी कोई सामान खरीदकर प्लास्टिक की पन्नी में रखा हो या फिर आप किसी ऐसे इलाके में रहते हों जो प्लास्टिक से पटा हो। हालात जो भी हों लेकिन यह खबर हमें दोबारा सोचने पर मजबूर करने वाली है।
स्टडी में हुआ चौंकाने वाला खुलासा (New Study on Plastic)
इस स्टडी के अनुसार साल 2024 में एक शव परीक्षण के दौरान जुटाए गए सामान्य मानव मस्तिष्क के सैंपल में आठ साल पहले के नमूनों की तुलना में कहीं ज्यादा नैनो प्लास्टिक्स पाए गए। यह मात्रा करीब एक चम्मच के बराबर थी। इस शोध के प्रमुख वैज्ञानिक मैथ्यू कैंपेन ने कहा कि शव के मस्तिष्क के नमूनों में उनके किडनी और लिवर की तुलना में सात से 30 गुना ज्यादा नैनो प्लास्टिक यानी (प्लास्टिक के छोटे-छोटे टुकड़े) थे। यह मात्रा करीब एक चम्मच के बराबर है।
आठ साल में बढ़ी 50 फीसदी मात्रा (New Study on Plastic)
यह मात्रा साल 2016 के शव परीक्षण में जुटाए गए मस्तिष्क के सैंपल्स की तुलना में करीब 50% ज्यादा है। इसका मतलब यह होगा कि आज हमारा मस्तिष्क 99.5% मस्तिष्क है और बाकी प्लास्टिक है। वैज्ञानिक मानते हैं कि यह भी संभव है कि प्लास्टिक को मापने के वर्तमान तरीकों ने शरीर में उनके स्तर को कम या ज्यादा आंका हो। फिलहाल एकदम सटीक अनुमान लगाने के लिए कड़ी मेहनत जारी है। वैज्ञानिकों का दावा है कि वो एक साल के भीतर ऐसा कर लेंगे।
डिमेंशिया मरीजों में तीन से पांच गुना (New Study on Plastic)
शोधकर्ताओं ने डिमेंशिया से पीड़ित 12 लोगों के मस्तिष्क में एक स्वस्थ मस्तिष्क की तुलना में तीन से पांच गुना अधिक प्लास्टिक के टुकड़े पाए। ये टुकड़े इतने बारीक थे कि इन्हें नंगी आंखों से नहीं देखा जा सकता। ये मस्तिष्क की धमनियों और नसों की दीवारों के साथ-साथ मस्तिष्क की प्रतिरक्षा कोशिकाओं में भी घुस चुके थे। कैम्पेन ने कहा कि थोड़ा चिंताजनक है। डिमेंशिया एक ऐसी बीमारी है जिसमें रक्त मस्तिष्क अवरोध और निकासी तंत्र क्षतिग्रस्त हो जाता है।
माइक्रोप्लास्टिक्स की मात्रा अधिक (New Study on Plastic)
इसके अलावा, यह भी संभावना है कि डिमेंशिया के साथ सूजन वाली सेल्स और ब्रेन टिश्यू मिलकर प्लास्टिक के लिए एक प्रकार का सिंक बना सकता है फिर भी इससे यह आशंका बढ़ गई है कि माइक्रोप्लास्टिक और न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियों जैसे अल्जाइमर और पार्किंसन्स के बीच गहरा संबंध हो सकता है। हम इन रिजल्ट की व्याख्या करने में बहुत सतर्क रहना चाहते हैं क्योंकि रोग (डिमेंशिया) के कारण माइक्रोप्लास्टिक्स की मात्रा बहुत अधिक होने की संभावना है।
शरीर में प्रवेश कर रहा प्लास्टिक (New Study on Plastic)
कैम्पेन ने कहा कि हम वर्तमान में यह सुझाव नहीं देते हैं कि माइक्रोप्लास्टिक्स रोग का कारण हो सकता है। न्यू जर्सी के पिसकैटवे में रटगर्स यूनिवर्सिटी में फार्माकोलॉजी और टॉक्सिकोलॉजी की एसोसिएट प्रोफेसर फोबे स्टेपलटन ने कहा कि मस्तिष्क में प्लास्टिक जमा होने से यह साबित नहीं होता कि वे नुकसान पहुंचाते हैं हालांकि वह नए अध्ययन में शामिल नहीं थीं। वैज्ञानिकों का मानना है कि माइक्रोप्लास्टिक खाने और पानी के जरिए हमारे शरीर में प्रवेश कर रहा है।
माइक्रोप्लास्टिक से होने वाले खतरे (New Study on Plastic)
खासतौर पर प्लास्टिक से दूषित पानी से सिंचित फसलें और मांसाहारी भोजन में इसकी मात्रा अधिक पाई गई है। पॉली एथलीन (जो बोतलों और प्लास्टिक कप में इस्तेमाल किया जाता है) ज्यादा दिमाग में जमा हो रहा है। शोध में सामने आया कि यह छोटे-छोटे कण ब्लड-ब्रेन बैरियर को पार कर दिमाग में प्रवेश कर रहे हैं। सच पूछिए तो माइक्रोप्लास्टिक शरीर के सेल्स को नुकसान पहुंचा सूजन पैदा कर सकते हैं। ये ब्रेन से संचालित कामों में बाधक बन सकते हैं।
खास सिंगल-यूज़ प्लास्टिक से बचें (New Study on Plastic)
खासकर जहां अच्छी मेमरी और थिंकिंग कैपेसिटी ज्यादा यूज होती है। हार्ट अटैक, स्ट्रोक और कैंसर का खतरा बढ़ाने में भी माइक्रोप्लास्टिक का रोल है। हम प्लास्टिक के इस्तेमाल को लेकर जागरूक हो सकते हैं। जैसे पानी की बोतलें हों या खाने को प्लास्टिक कंटेनर में स्टोर करना, इन सबकी जगह कांच या धातु के बर्तन प्रयोग कर सकते हैं। प्रोसेस्ड फूड से बचाव के अलावा आसपास की हवा को शुद्ध रखने की कोशिश करें। हालांकि यह जिम्मेदारी हर नागरिक की है।
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है। आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।