Khabarwala24 News Lucknow : Nikay chunav नगर निकाय चुनाव भले ही सीमित क्षेत्र और शहरी मतदाताओं के जरिए होते हैं लेकिन, इस चुनाव के परिणाम दूरगामी होते हैं। खास बात यह है कि जब ये चुनाव लोकसभा चुनाव से पहले उसके सेमी फाइनल के तौर पर लड़े गए हों, इनका काफी बढ़ जाता है। पिछड़ा वर्ग आरक्षण की नई व्यवस्था से हुए नगर निकाय के चुनाव नतीजों ने आगामी 2024 के लोकसभा चुनाव के लिहाज से भी कई महत्वपूर्ण संदेश दिए हैं। सभी को इस चुनाव से अलग अलग संदेश मिला है।
निकाय चुनाव 2023 ने रणनीतिक रूप से फिर चूके मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के लिए संदेश तो दिया ही है, पहली बार शत प्रतिशत नगर निगमों व अन्य निकायों में पहले से बेहतर प्रदर्शन कर जीत हासिल करने वाली भाजपा (BJP) को भी अलर्ट किया है। इस चुनाव के नतीजे यह भी बता रहे हैं कि बहुजन समाज पार्टी को मजबूती से मैदान में आने के लिए पुराने प्रयोगों से बात नहीं बनने वाली है। आम आदमी पार्टी व एआईएमआईएम को नजरअंदाज कर रणनीति बनाना, आगे मुख्य राजनीतिक दलों को भारी पड़ सकता है। इस निकाय चुनाव में सिंबल (चुनाव चिंह)पर चुनाव में हिस्सा लेने वाले दलों को न सिर्फ उनकी चूक का एहसास कराया है, बल्कि लोकसभा चुनाव के लिए उन्हें सजग भी किया है।
शहरों में भाजपा का दबदबा कायम
निकाय चुनाव 2023 के नतीजों से स्पष्ट हो गया है कि शहरों में भाजपा (BJP) का दबदबा बरकरार है। भाजपा (BJP)निकाय चुनाव के इन नतीजों को ऐतिहासिक करार देकर लोकसभा चुनाव की बड़े मनोबल से तैयारी का मैदान में उतर सकती है। लेकिन, कई जगह उसके अपने ही विधायक-सांसद चिंता का सबब बने हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि कई सांसदों-विधायकों को अपने शुभचिंतकों के सिवा कोई दूसरा पसंद नहीं है। आगामी लोकसभा चुनाव 2024 में होने के बावजूद कई जगह सांसदों-विधायकों ने मनचाहे प्रत्याशी को टिकट न मिलने से न सिर्फ भितरघात किया, बल्कि कई जगह तो बागी लड़ाकर उनकी मदद भी की। कई निकायों में प्रत्याशियों का सही चयन नहीं किया गया। लोकसभा चुनाव से पहले भितरघातियों व बागियों को लेकर भाजपा को स्पष्ट संदेश देना होगा।
सत्ता विरोधी मतों को नहीं सहज पाई सपा
वहीं उत्तर प्रदेश में सत्ता विरोधी मतों को सहेजने में सपा रणनीतिक रूप से फेल साबित हुई। प्रत्याशी चयन से लेकर प्रचार तक उसकी यह चूक नजर आई है। मथुरा व बरेली में प्रत्याशी पर अंत तक दुविधाजनक स्थिति और कई शहरों में प्रत्याशी घोषणा के साथ ही कमजोर चेहरे देने का संदेश, सपा के लिए काफी नुकसानदायक हुआ है। इतना ही नहीं समाजवादी पार्टी शाहजहांपुर में तो अपना प्रत्याशी ही भाजपा में जाने से नहीं रोक पाई। समाजवादी पार्टी के लिए लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन के लिए नई रणनीति के साथ आने का संदेश बड़ा साफ है।
बसपा के लिए पुराने प्रयोग से बेहतर की नहीं है उम्मीद
उत्तर प्रदेश में बसपा की स्थिति पहले से और खराब हुई है। निकाय चुनाव के परिणाम से साफ संकेत हैं कि पुराने प्रयोग से पार्टी बेहतर की उम्मीद नहीं कर सकती है। दलित-मुस्लिम का समीकरण का पुराना प्रयोग कारगर साबित नहीं हुआ। पिछली बार दो जीत के उलट इस बार एक भी जीत न मिलना तथा तीन नगर निगमों में नंबर दो पर सिमटना इसकी बानगी है।
इन पार्टियों को नजरअंदाज करना पड़ेगा भारी
निकाय चुनाव 2023 के आंकड़े बता रहे हैं कि प्रदेश में लगातार आधार बढ़ाने की कोशिश में लगी आम आदमी पार्टी, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम), आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) की कोशिशें परवान चढ़ रही हैं। इन दलों ने न सिर्फ कई पालिका परिषदों, पंचायतों में जीत हासिल की है, बल्कि कई सीटों पर समीकरण भी बनाया-बिगाड़ा है। आगामी चुनावों में इन्हें नजरंदाज कर आगे की रणनीति बनाना मुख्य राजनीतिक दलों के लिए खतरा हो सकता है। सुभासपा व निषाद पार्टी ने भी निकाय चुनाव में अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है। आगे यह गठबंधन की राजनीति में बेहतर मोलभाव करने की स्थिति में होंगे।
एक जगह नहीं रूक रहा मुस्लिम मतदाता
उत्तर प्रदेश में मुस्लिम मतदाता किसी एक जगह बंधे रहने को तैयार नहीं हैं। चुनावों में उन्हें जहां बेहतर विकल्प नजर आ रहा है, वे वहां जाने से गुरेज नहीं कर रहे हैं। शाहजहांपुर व मुरादाबाद में कांग्रेस तथा मथुरा, सहारनपुर व आगरा में बसपा का नंबर दो पर पहुंचना इसका साफ संकेत है। बड़ी संख्या में कम आर्थिक पूंजी व संसाधन वाले पार्षद व सदस्य जैसे पदों पर इस बार भी निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर जीत दर्ज की है। हालांकि आगामी लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे बताएंगे कि राजनीतिक दलों ने निकाय चुनाव के नतीजों के संदेशों को किस हद तक माना और रणनीति बदलकर काम किया।