Khabarwala 24 News New Delhi : Papmochini ekadashi सनातन धर्म में कहा गया है कि संसार में उत्पन्न होने वाला कोई भी मनुष्य ऐसा नहीं है जिससे जाने-अनजाने में कोई पाप नहीं हुआ हो। ईश्वरीय विधान के अनुसार पाप के दंड से बचा जा सकता है अगर पापमोचिनी एकादशी का व्रत किया जाए। हर साल चैत्र माह की कृष्ण एकादशी तिथि पर पापमोचिनी एकादशी का व्रत किया जाता है। इस वर्ष पापमोचिनी एकादशी 5 अप्रैल, शुक्रवार को है। धर्मशास्त्रों में एकादशी तिथि को विष्णु स्वरूप माना गया है। इस तिथि को पूजित होने पर संसार के स्वामी सर्वेश्वर श्रीहरि संतुष्ट होकर अपने भक्तों के समस्त कष्टों का निवारण करते हैं। एकादशी तिथि को रात्रि में जागरण करने का बहुत महत्त्व बताया गया है।
पापमोचिनी एकादशी व्रत का महत्व (Papmochini ekadashi)
पदम पुराण के अनुसार जो मनुष्य पापमोचिनी एकादशी का व्रत करते हैं उनका सारा पाप नष्ट हो जाता है। इस व्रत को करने से सहस्त्र गोदान का फल मिलता है। ब्रह्म हत्या, सुवर्ण चोरी, सुरापान और गुरुपत्नी गमन जैसे महापाप भी इस व्रत को करने से दूर हो जाते हैं अर्थात यह व्रत बहुत ही पुण्यमय है। बड़े-बड़े यज्ञों से भगवान को उतना संतोष नहीं मिलता, जितना एकादशी व्रत के अनुष्ठान से होता है।
पापमोचिनी एकादशी की पूजाविधि (Papmochini ekadashi)
इस व्रत में भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है। व्रती को एक बार दशमी तिथि को सात्विक भोजन करना चाहिए। मन से भोग-विलास की भावना त्यागकर भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिए। एकादशी के दिन सूर्योदय काल में स्नान करके व्रत का संकल्प करना चाहिए। संकल्प के उपरांत षोडषोपचार सहित श्री विष्णु की पूजा करनी चाहिए। भगवान के समक्ष बैठकर भगवद कथा का पाठ अथवा श्रवण करना चाहिए।
पापमोचिनी एकादशी पौराणिक कथा (Papmochini ekadashi)
कथा के अनुसार भगवान विष्णु युधिष्ठिर से कहते है ”राजा मान्धाता ने एक समय में लोमश ऋषि से जब पूछा कि प्रभु यह बताएं कि मनुष्य जो जाने-अनजाने में पाप कर्म करता है उससे कैसे मुक्त हो सकता है। राजा मान्धाता के इस प्रश्न के जवाब में लोमश ऋषि ने राजा को एक कहानी सुनाई कि चैत्ररथ नामक सुन्दर वन में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी ऋषि तपस्या में लीन थे।
Papmochini ekadashi इस वन में एक दिन मंजुघोषा नामक अप्सरा की नजर ऋषि पर पड़ी तो वह उन पर मोहित हो गयी और उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने हेतु यत्न करने लगी। कामदेव भी उस समय उधर से गुजर रहे थे कि उनकी नजर अप्सरा पर गयी और वह उसकी मनोभावना को समझते हुए उसकी सहायता करने लगे। अप्सरा अपने यत्न में सफल हुई और ऋषि कामपीड़ित हो गये।
Papmochini ekadashi काम के वश में होकर ऋषि शिव की तपस्या का व्रत भूल गये और अप्सरा के साथ रमण करने लगे। कई वर्षो के बाद जब उनकी चेतना जगी तो उन्हें एहसास हुआ कि वह शिव की तपस्या से विरत हो चुके है उन्हें तब उस अप्सरा पर बहुत क्रोध हुआ और तपस्या भंग करने का दोषी जानकर ऋषि ने अप्सरा को पिशाचनी होने का श्राप दे दिया। श्राप से दुःखी होकर वह ऋषि के पैरों पर गिर पड़ी और श्राप से मुक्ति के लिये अनुनय करने लगी।
Papmochini ekadashi अप्सरा की याचना से द्रवित हो मेधावी ऋषि ने उसे विधि सहित चैत्र कृष्ण एकादशी का व्रत करने के लिये कहा भोग में निमग्न रहने के कारण ऋषि का तेज भी लोप हो गया था अतः ऋषि ने भी इस एकादशी का व्रत किया जिससे उनका पाप नष्ट हो गया। उधर अप्सरा भी इस व्रत के प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्त हो गयी और उसे सुन्दर रूप प्राप्त हुआ व स्वर्ग के लिये प्रस्थान कर गयी।