Wednesday, April 2, 2025

Pranab Mukherjee Birth Anniversary प्रणब न होते राष्ट्रपति तो अफजल को न होती फांसी, 2001 के संसद हमले के दोषी के रूप में सामने आया था नाम

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Khabarwala 24 News New Delhi : Pranab Mukherjee Birth Anniversary अफजल गुरु, जिनका नाम 2001 के संसद हमले के दोषी के रूप में सामने आया था।

भारतीय राजनीति और न्यायिक इतिहास में एक विवादास्पद नाम बन गया। गुरु को 2013 में फांसी दी गई, लेकिन इस फैसले ने ना केवल भारतीय न्याय व्यवस्था को प्रभावित किया, बल्कि कई सवालों को भी जन्म दिया। इन सवालों में सबसे बड़ा सवाल था कि इस फैसले के पीछे किसकी भूमिका थी और क्या इस मामले में राजनीति का हस्तक्षेप था।

कानून का सख्ती से पालन किया जाता है (Pranab Mukherjee Birth Anniversary)

बेशक, सार्वजनिक रूप से, पूरे दिन सरकारी प्रबंधकों ने अफ़ज़ल गुरु की फांसी को किसी भी राजनीति से अलग रखने की कोशिश की। उस दौरान के तत्कालीन सूचना और प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने कहा, “भारतीय जनता पार्टी के विपरीत, हम राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े फ़ैसलों का राजनीतिकरण नहीं करते हैं। उन्होंने आगे कहा, “जब आप आपराधिक न्यायशास्त्र के तहत किसी प्रक्रिया से निपट रहे होते हैं, तो आप देखते हैं कि कानून का सख्ती से पालन किया जाता है।

35 मृत्युदंडों को दिया आजीवन कारावास (Pranab Mukherjee Birth Anniversary)

सरकारी सूत्रों ने बताया कि गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे और राष्ट्रपति के होने से उनका काम आसान हो गया था, जो अफ़ज़ल गुरु मामले के शीघ्र निपटारे पर सहमत थे। राष्ट्रपति के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान एपीजे अब्दुल कलाम ने तत्कालीन गृह मंत्री शिवराज पाटिल को संकेत दिया था कि 2004 में धनंजय चटर्जी की फांसी की सज़ा के बाद ही मृत्युदंड के प्रति उत्साह नहीं है। प्रतिभा ने पद छोड़ने से पहले 35 मृत्युदंडों को आजीवन कारावास में बदल दिया था।

प्रतिभा ने कई दया याचिका की थी खारिज (Pranab Mukherjee Birth Anniversary)

हालांकि अफ़ज़ल गुरु की दया याचिका की फाइल 4 अगस्त 2011 को राष्ट्रपति भवन में आई थी। उस दौरान प्रतिभा पाटिल राष्ट्रपति पद पर थीं, लेकिन कार्यभार संभालने के बाद प्रणव मुखर्जी ने 15 नवंबर 2012 को फाइल को नए सिरे से देखने के लिए गृह मंत्रालय को वापस भेज दिया। गृह मंत्रालय ने 23 जनवरी को फाइल राष्ट्रपति को वापस कर दी और उन्होंने 3 फरवरी को याचिका को खारिज कर वापस भेज दिया, जिससे शनिवार को फांसी का रास्ता साफ हो गया।

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का अहम रोल (Pranab Mukherjee Birth Anniversary)

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का नाम अफज़ल गुरु की फांसी के मामले में महत्वपूर्ण तरीके से सामने आया. कहा जाता है कि जब अफजल गुरु की फांसी पर चर्चा हो रही थी, तब प्रणब मुखर्जी ने एक अहम निर्णय लिया था। अफजल गुरु को फांसी देने का मामला भारतीय सरकार के उच्च स्तर पर चर्चा का विषय था और प्रणब मुखर्जी, जो उस समय भारत के वित्त मंत्री थे, ने इस फैसले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

न्याय व्यवस्था और राजनीतिक नेतृत्व (Pranab Mukherjee Birth Anniversary)

प्रणब मुखर्जी ने इस मामले को लेकर कई कानूनी और राजनीतिक पहलुओं पर विचार किया था। रिपोर्ट्स के मुताबिक, उन्होंने गुरु की दया याचिका को खारिज करने के पक्ष में अपनी राय दी थी, जो बाद में फांसी के फैसले का कारण बनी। उनके फैसले से साफ है कि भारतीय न्याय व्यवस्था और राजनीतिक नेतृत्व इस मामले में एकजुट थे और अफज़ल गुरु को फांसी देने का फैसला अंतिम रूप से लिया गया।

राजनीति के इतिहास में अविस्मरणीय (Pranab Mukherjee Birth Anniversary)

प्रणब मुखर्जी का यह फैसला एक तरह से उनकी कानूनी और राजनीतिक सोच को दर्शाता है। जहां एक तरफ इस फैसले ने उन लोगों को संतुष्ट किया जो अफज़ल गुरु के काम को देशद्रोह मानते थे, वहीं दूसरी ओर यह सवाल भी खड़ा हुआ कि क्या राजनीति को इस तरह के फैसलों में हस्तक्षेप करना चाहिए। अफजल गुरु की फांसी पर प्रणब मुखर्जी का निर्णय भारतीय राजनीति और न्याय व्यवस्था के लिए एक निर्णायक मोड़ था। हालांकि यह फैसला विवादित था, लेकिन यह घटना भारतीय राजनीति के इतिहास में हमेशा याद रखी जाएगी।

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