Khabarwala 24 News New Delhi : Raja Ram वैसे तो परमात्मा दुनिया का मालिक है, लेकिन हिंदू मान्यताओं के अनुसार समय-समय पर मनुष्यों को नेकी का रास्ता दिखाने के लिए वो खुद मनुष्य रूप में जन्म लेता है और रास्ता दिखाता है।
इसी के अनुसार अतीत में भगवान विष्णु ने भारत भूमि के अयोध्या नगर में राजा दशरथ के पुत्र के रूप में अवतार लिया और इस नगर पर राज्य कर राजा की मर्यादा, पुत्र की मर्यादा, भाई की मर्यादा समेत अनेक बातें मनुष्यों को सिखाईं। लेकिन क्या आप जानते हैं देश के उन दो शहरों को जहां भगवान को ही आज भी राजा माना जाता है। ये हैं मध्य प्रदेश के उज्जैन और ओरछा, उज्जैन में महाकाल को राजा माना जाता है तो ओरछा के राजा राम हैं। आज जानते हैं बुंदेलखंड समेत देश भर में प्रचलित ओरछा के राजा राम की कहानी…
यह गारद किसी और को नहीं देता सलामी (Raja Ram)
बता दें कि मध्य प्रदेश की पर्यटन नगरी ओरछा को भगवान श्रीराम की राजधानी माना जाता है। इस शहर में केवल भगवान श्रीराम राजा सरकार को ही वीआईपी माना जाता है और उन्हें मंदिर खुलने पर चार गार्ड सशस्त्र सलामी देते हैं और बंद होने के समय एक गार्ड सलामी देता है। ओरछा स्थित श्रीरामराजा मंदिर में राजा के रूप में पूजे जाने वाले भगवान को सलामी देने वाला गार्ड किसी और को सलामी नहीं देता।
परंपरा करीब 450 सालों से चली आ रही (Raja Ram)
यह परंपरा करीब 450 सालों से तब से चली आ रही है, जब तत्कालीन राजा मधुकर शाह की रानी रामलला की प्रतिमा अयोध्या से राजा के रूप में यहां लाई थीं। इसके बाद मधुकर शाह ने भी रामलला के प्रतिनिधि के रूप में ही शासन किया और अपनी राजधानी भी बदल ली थी। बुंदेलखंड में किंवदंती है कि अयोध्या में भगवान श्रीराम बाल स्वरूप में विराजते हैं, जबकि ओरछा में राजा के रूप में। इसी कारण इस शहर में कोई दूसरा राजा नहीं होता।
भगवान श्रीराम के राजा बनने की कहानी (Raja Ram)
धार्मिक ग्रंथों और बुंदेलखंड की जनश्रुतियों के अनुसार आदि मनु और सतरूपा ने हजारों वर्षों तक शेषशायी विष्णु को बालरूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या की। इस पर विष्णुजी ने प्रसन्न होकर उन्हें त्रेता में राम, द्वापर में कृष्ण और कलियुग में ओरछा के रामराजा के रूप में अवतार लेकर उन्हें बालक का सुख देने का आशीर्वाद दिया। बुंदेलखंड की जनश्रुतियों के अनुसार यही आदि मनु और सतरूपा कलियुग में मधुकर शाह और उनकी पत्नी गणेशकुंवरि के रूप में जन्मे। लेकिन ओरछा नरेश मधुकरशाह कृष्ण भक्त हुए और उनकी पत्नी गणेशकुंवरि राम भक्त।
कुटी बनाकर साधना करने लग गईं रानी
एक बार मधुकर शाह ने कृष्णजी की उपासना के लिए गणेश कुंवरि को वृंदावन चलने को कहा, लेकिन रानी ने मना कर दिया। इससे क्रुद्ध राजा ने उनसे कहा कि तुम इतनी राम भक्त हो तो जाकर अपने राम को ओरछा ले आओ। इस पर रानी अयोध्या पहुंचीं और सरयू नदी के किनारे लक्ष्मण किले के पास कुटी बनाकर साधना करने लगीं।
इन्हीं दिनों संत शिरोमणि तुलसीदास भी अयोध्या में साधनारत थे। संत से आशीर्वाद पाकर रानी की आराधना दृढ़ से दृढ़तर होती गई। लेकिन कई महीनों तक उन्हें रामराजा के दर्शन नहीं हुए तो वह निराश होकर अपने प्राण त्यागने सरयू में कूद गईं। यहीं जल में उन्हें रामराजा के दर्शन हुए और रानी ने उन्हें साथ चलने के लिए कहा।
तभी टस से मस नहीं हुआ बालरूप विग्रह
इस पर उन्होंने तीन शर्त रख दीं, पहली- यह यात्रा बाल रूप में पैदल पुष्य नक्षत्र में साधु संतों के साथ करेंगे, दूसरी जगह जहां बैठ जाऊंगा वहां से उठूंगा नहीं और तीसरी वहां राजा के रूप में विराजमान होंगे। मान्यता है कि इसी के बाद बुंदेला राजा मधुकर शाह ने अपनी राजधानी टीकमगढ़ में बना ली।
इधर, रानी ने राजा को संदेश भेजा कि वो रामराजा को लेकर ओरछा आ रहीं हैं और राजा मधुकर शाह चतुर्भुज मंदिर का निर्माण कराने लगे। लेकिन जब रानी 1631 ईं में ओरछा पहुंचीं तो शुभ मुहूर्त में मूर्ति को चतुर्भुज मंदिर में रखकर प्राण प्रतिष्ठा कराने की सोची और उसके पहले शर्त भूलकर भगवान को रसोई में ठहरा दिया। इसके बाद राम के बालरूप का यह विग्रह अपनी जगह से टस से मस नहीं हुआ और चतुर्भुज मंदिर आज भी सूना है। बाद में यह रसोई रामराजा मंदिर के रूप में विख्यात हुई।
