Khabarwala 24 News New Delhi : Rules of Religious Rituals अक्सर देखा जा रहा है कि लोग पूजा में बैठते समय रूमाल या तौलिया सिर पर रख लेते हैं। इस बात को लेकर अक्सर पूछा जाता है कि क्या ऐसा करना उचित है जबकि शास्त्रों में सिर ढकने का निषेध है। हमारे धर्म शास्त्र केवल शौच के समय ही सिर ढकने की सलाह देते हैं।
Rules of Religious Rituals वहीं किसी को प्रणाम करते समय, जप-पूजा ओर हवन करते समय सिर खुला रखने का विधान करते हैं। सनातन धर्म के तमाम शाष्त्रों के मुताबिक पूजा हवन आदि में सिर खुले रहेंगे तो ही अभीष्ठ फल की प्राप्ति होगी। आज हम उन्हीं शास्त्रों की बात करेंगे।
पूजा की चौकी पर बैठते समय ध्यान रखें (Rules of Religious Rituals)
‘उष्णीषो कञ्चुकी चात्र मुक्तकेशी गलावृतः।
प्रलपन् कम्पनश्चैव तत्कृतो निष्फलो जपः॥
शिर: प्रावृत्य कण्ठं वा मुक्तकच्छशिखोऽपि वा|
अकृत्वा पादयोः शौचमाचांतोऽप्यशुचिर्भवेत||’
कुर्म पुराण में पूजा के विधान पर विस्तार से चर्चा मिलती है। इस पुराण के 13वें अध्याय के नौंवे श्लोक में साफ तौर पर कहा गया है कि पूजा की चौकी पर बैठते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। यदि इस श्लोक के अर्थ की बात करें तो सीधे तौर पर यह श्लोक पगड़ी पहनकर, कुर्ता पहनकर, नग्न होकर, शिखा खोलकर, कण्ठ को वस्त्र से लपेटकर, बोलते हुए या कांपते हुए जप तप या पूजा का निषेध करता है।
निष्फल होती है सिर ढंककर की पूजा (Rules of Religious Rituals)
इस श्लोक के मुताबिक जो भी श्रद्धालु ऐसा करता है तो उसका पूजा या जप तप पूरी तरह से निष्फल हो जाता है। कुर्म पुराण के ही अगले श्लोक में कहा गया है कि सिर या कण्ठ को ढककर, शिखा तथा कच्छ(लांग/पिछोटा) खुलने पर या फिर बिना पैर धोए आचमन नहीं करना चाहिए। इस पुराण के मुताबिक आचमन करने से पूर्व सिर व कण्ठ से वस्त्र हटा देने चाहिए। यदि शिखा व कच्छ बांधे और पांव धुलने के बाद ही आचमन करना चाहिए। कुछ इसी तरह का विधान ‘शब्द कल्पद्रुम’ में भी किया है।
अपवित्र अवस्था में भी पूजा का निषेध (Rules of Religious Rituals)
इस धर्म शास्त्र के श्लोक ‘शिरः प्रावृत्य वस्त्रोण ध्यानं नैव प्रशस्यते’ का अर्थ है कि वस्त्र से सिर ढंककर भगवान का ध्यान नहीं करना चाहिए। इसी प्रकार ‘उष्णीशी कञ्चुकी नग्नो मुक्तकेशो गणावृत। अपवित्रकरोऽशुद्धः प्रलपन्न जपेत् क्वचित॥’ का अर्थ है कि सिर ढंककर, सिले वस्त्र धारण कर, बिना कच्छ के, शिखा खुली होने पर या गले में वस्त्र लपेटकर भगवान का ध्यान नहीं करना चाहिए। इसी प्रकार अपवित्र हाथों से या ऐसी अवस्था में भी भगवान के नाम का जप नहीं करना चाहिए।
शिव महापुराण में भी पूरी तरह निषेध (Rules of Religious Rituals)
न जल्पंश्च न प्रावृतशिरास्तथा।
अपवित्रकरो नग्नः शिरसि प्रावृतोऽपि वा।
प्रलपन् प्रजपेद्यावत्तावत् निष्फलमुच्यते।।
रामार्च्चनचन्द्रिकायाम नामक ग्रंथ में याज्ञवल्क्य मुनि कहते हैं कि बातचीत करते हुए खुले सिर भगवान का ध्यान वर्जित है। इसी प्रकार अपवित्र हाथों से या बिना कच्छ के जपादि कर्म नहीं करने चाहिए। पूजा के विधान को शिव पुराण के उमा खण्ड में भी विस्तार से कहा गया है। शिव पुराण के 14वें अध्याय में साफ तौर पर कहा गया है कि सिर पर पगड़ी रखकर पूजा में नहीं बैठना चाहिए। इसी प्रकार कुर्ता पहनकर, नग्न होकर, खुले बालों के साथ या गले के कपड़ा लपेटकर अपने अराध्य की साधना नहीं करनी चाहिए। अशुद्ध हाथों से या सम्पूर्ण शरीर अशुद्ध हो तब भी जप तप नहीं करने चाहिए।