Khabarwala 24 News New Delhi : Shiv-Parvati Daughters शिवजी के कैलाश पर्वत पर निवास करने का तर्क इस प्रकार है कि वहाँ का वातावरण अत्यंत ठंडा होता है और शिवजी भस्म का उपयोग शरीर के आवरण के रूप में करते हैं, जो वस्त्रों की तरह ही उपयोगी होती है। भस्म बहुत बारीक लेकिन कठोर होती है, जो त्वचा के रोमछिद्रों को भर देती है, जिससे शरीर को सर्दी या गर्मी का अनुभव नहीं होता। शिवजी का रहन-सहन सन्यासियों के समान है और सन्यास का अर्थ है संसार से अलग होकर प्रकृति के सानिध्य में रहना और प्राकृतिक साधनों का उपयोग करना। भस्म भी इन्हीं प्राकृतिक साधनों में शामिल है।
सर्प के रूप में हुआ था कन्याओं का जन्म (Shiv-Parvati Daughters)
एक बार भगवान शिव और माता पार्वती जल क्रीड़ा के लिए एक सरोवर में गए। उस वक्त भगवान शिव का वीर्यस्खलन हो गया और उन्होंने बिना बताए अपना वीर्य पत्ते पर रख दिया। उस वीर्य से पाँच कन्याओं का जन्म हुआ, लेकिन ये कन्याएँ मनुष्य रूप में नहीं बल्कि सर्प रूप में पैदा हुईं। माता पार्वती को इन कन्याओं के बारे में कुछ नहीं पता था। भगवान शिव हर सुबह सरोवर के पास जाकर अपनी कन्याओं से मिलते और उनके साथ खेलते थे। कई दिनों तक यह क्रम चलता रहा।
एक रहस्यमय और अनूठी घटना थी यह (Shiv-Parvati Daughters)
भगवान शिव की इन कन्याओं का जन्म और उनके साथ बिताया समय एक रहस्यमय और अनूठी घटना थी, जो शिवजी के जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती है। यह कथा उनके अनंत शक्तियों और उनके विभिन्न रूपों के बारे में हमें और अधिक जानने का अवसर प्रदान करती है। माता पार्वती को इस रहस्य के बारे में जानने में देर लगी, लेकिन यह कथा भगवान शिव की एक अनोखी और रहस्यमय शक्ति का प्रदर्शन करती है, जो उनके व्यक्तित्व की गहराई और उनके अद्भुत कार्यों को दर्शाती है।
पुत्रियों को मारना चाहती थी माता पार्वती (Shiv-Parvati Daughters)
इस दृश्य को देखकर माता पार्वती को क्रोध आ गया और उन्होंने उन पाँचों कन्याओं को मारने की मंशा बना ली। जैसे ही उन्होंने पाँचों नाग कन्याओं को मारने के लिए अपना पैर उठाया, वैसे ही भगवान शिव ने उन्हें रोक लिया और बताया कि ये कन्याएं आपकी पुत्रियां हैं। यह सुनकर माता पार्वती आश्चर्यचकित हो गईं।माता पार्वती को समझ नहीं आ रहा था कि यह कैसे संभव हो सकता है।
मिलकर पाँच कन्याओं का पालन-पोषण (Shiv-Parvati Daughters)
भगवान शिव ने उन्हें सारी घटना विस्तार से बताई और बताया कि कैसे उनका वीर्य पत्ते पर रखने के बाद इन पाँच कन्याओं का जन्म हुआ था। माता पार्वती का क्रोध शांत हो गया और उनके हृदय में अपने पुत्रियों के लिए ममता जाग उठी। भगवान शिव और माता पार्वती ने मिलकर इन पाँच कन्याओं का पालन-पोषण किया और उन्हें स्नेह और प्रेम दिया।
धैर्य और समझदारी से काम लेना चाहिए (Shiv-Parvati Daughters)
यह घटना इस बात का प्रतीक है कि भगवान शिव और माता पार्वती की ममता और स्नेह किसी भी प्रकार के विभाजन को स्वीकार नहीं करती और वे अपने सभी बच्चों को समान रूप से प्रेम और स्नेह देते हैं। यह कथा शिवजी और पार्वतीजी के प्रेम, स्नेह, और उनके संबंधों की गहराई को दर्शाती है। इसके साथ ही यह हमें यह भी सिखाती है कि किसी भी परिस्थिति में धैर्य और समझ से काम लेना चाहिए और सच्चाई को जानने की कोशिश करनी चाहिए।
ये थे शिवजी की इन पांच पुत्रियों के नाम (Shiv-Parvati Daughters)
माता पार्वती ने भगवान शिव से सुनकर उस कथा पर हंसी में लिपटी। उन्होंने भगवान शिव की कन्याओं के नामों को जाना – जया, विषहर, शामिलबारी, देव, दोतलि। इनके नाम संस्कृत में भी सर्पों से संबंधित हैं और इन्हें सावन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन की पूजा का महत्व माना जाता है। यह पूजा उन्हें सर्पदोष से दूर रखने में मदद करती है, जैसा कि अनेक मान्यताएं बताती हैं।