Khabarwala 24 News New Delhi : Shri Krishna Spiritual Special महाभारत की युद्धभूमि में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता के उपदेश दिए थे, जो सर्वश्रेष्ठ ज्ञान के रूप में भी देखा जाता है। हिंदू ग्रंथों व पुराणों में कालावधि को 4 भागों में बांटा गया है। जिसमें से पहला है सतयुग त्रेतायुग द्वापर युग और कलियुग। अभी चौथा युग यानी कलियुग चल रहा है। गीता के उपदेश श्रीमद्भगवत गीता में निहित हैं, जो आप के समय में भी व्यक्ति को सही राह दिखाने का काम करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने पहले ही कलियुग को लेकर कुछ घोषणाएं कर दी थी जो आज के समय में सच भी साबित हो रही हैं। चलिए जानते हैं इसके बारे में।
कलियुग में घट जाएंगी ये चीजें (Shri Krishna Spiritual Special)
1. ततश्चानुदिनं धर्मः सत्यं शौचं क्षमा दया।
कालेन बलिना राजन् नङ्क्ष्यत्यायुर्बलं स्मृतिः॥
इस श्लोक में कहा गया है कि कलियुग में व्यक्ति की याद करने की क्षमता के साथ-साथ सच्चाई, स्वच्छता, सहिष्णुता, दया, जीवनकाल, शारीरिक बल आदि भी घटता जाएगा। आज इसका उदाहरण साफ तौर पर देखा जा सकता है।
धन व शक्ति का अधिक महत्व (Shri Krishna Spiritual Special)
2. वित्तमेव कलौ नॄणां जन्माचारगुणोदयः ।
धर्मन्याय व्यवस्थायां कारणं बलमेव हि ॥
इस श्लोक का अर्थ है कि कलियुग में जिस व्यक्ति के पास जितना पैसा होगा, वह उतना ही गुणी समझा जाएगा। इसी के साथ कलयुग में न्याय और व्यवस्था भी बल पर निर्भर करेगी। कुल मिलाकर इस युग में धन और शक्ति को अधिक महत्व दिया जाता है।
चालाक व स्वार्थी होंगे विद्वान (Shri Krishna Spiritual Special)
3. लिङ्गं एवाश्रमख्यातौ अन्योन्यापत्ति कारणम् ।
अवृत्त्या न्यायदौर्बल्यं पाण्डित्ये चापलं वचः ॥
इस श्लोक में कहा गया है कि कलियुग में न्याय पाने के लिए लोगों को अपना धन खर्च करना पड़ेगा। इसी के साथ जो व्यक्ति बहुत चालाक और स्वार्थी होगा उसे ही कलियुग में असली विद्वान माना जाएगा।
कलियुग में महज इतनी आयु (Shri Krishna Spiritual Special)
4. क्षुत्तृड्भ्यां व्याधिभिश्चैव संतप्स्यन्ते च चिन्तया ।
त्रिंशद्विंशति वर्षाणि परमायुः कलौ नृणाम्
इसका श्लोक का अर्थ ये है कि कलियुग में लोग भूख, प्यास, चिंताओं और बीमारियों से घिरे रहेंगे। इसी के साथ कलियुग में मध्यांतर में मनुष्य की उम्र केवल बीस या तीस वर्ष की ही होगी।
कलियुग में सच हो रही ये बातें (Shri Krishna Spiritual Special)
5. दूरे वार्ययनं तीर्थं लावण्यं केशधारणम् ।
उदरंभरता स्वार्थः सत्यत्वे धार्ष्ट्यमेव हि ॥
इस श्लोक में कहा गया है कि कलियुग में लोग दूर स्थित नदी और तालाबों को तो तीर्थ मानेंगे, लेकिन अपने पास रह रहे माता-पिता का अपमान करेंगे। बड़े-बड़े बाल रखना ही सुंदरता का प्रतीक माना जाएगा और मनुष्य का लक्ष्य केवल पेट भरना ही रह जाएगा। आज के समय में इस बात के उदाहरण तो हमें आसानी से देखने को मिल जाते हैं।