Wednesday, April 16, 2025

ब्रह्मज्ञान का ठहराव ही जीवन में मुक्ति मार्ग को प्रशस्त करता है

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खबरवाला 24 न्यूज : “ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति से जीवन में वास्तविक भक्ति का आरम्भ होता है और उसके ठहराव से हमारा जीवन भक्तिमय एंव आनंदित बन जाता है।“

उक्त् उद्गार निरंकारी सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज द्वारा ग्राउंड नम्बर 8, निरंकारी चौक बुराड़ी रोड, (दिल्ली) में आयोजित ‘नववर्ष’के विशेष सत्संग समारोह में उपस्थित सभी श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए गये।

इस कार्यक्रम में दिल्ली एवं एन सी.आर सहित अन्य स्थानों से भी हजारों की संख्या में भक्तगण उपस्थित हुए और सभी ने वर्ष के प्रथम दिन सत्गुरु के साकारमयी दिव्य दर्शनों एंव पावन प्रवचनों से स्वयं को आनन्दित एंव कृतार्थ किया।

ब्रह्मज्ञान का महत्व बताया

सत्गुरु माता जी ने ब्रह्मज्ञान का महत्व बताते हुए फरमाया कि ब्रह्मज्ञान का अर्थ हर पल में इसकी रोशनी में रहना है और यह अवस्था हमारे जीवन में तभी आती है जब इसका ठहराव निरंतर बना रहे, तभी वास्तविक रूप में मुक्ति संभव है। इसके विपरीत यदि हम माया के प्रभाव में ही रहते है तब निश्चित रूप से आनंद की अवस्था और मुक्ति प्राप्त करना संभव नहीं।

जीवन की सार्थकता तो इसी में है कि हम माया के प्रभाव से स्वयं को बचाते हुए अपने जीवन के उद्देश्य को समझे कि यह परमात्मा क्या है और हम उसे जानने हेतु प्रयासरत रहे।

इस संसार में निरंकार एंव माया दोनों का ही प्रभाव निरंतर बना रहता है। अतः हमें स्वयं को निरंकार से जोड़कर भक्ति करनी है। अपने जीवन में सेवा, सुमिरण, सत्संग को केवल एक क्रिया रूप में नहीं, एक चैक लिस्ट के रूप में नहीं कि केवल अपनी उपस्थिति को जाहिर करना है अपितु निरंकार से वास्तविक रूप में जुड़कर अपना कल्याण करना है।

उदाहरण सहित समझाया

सत्गुरु माता जी ने उदाहरण सहित समझाया कि जिस प्रकार एक विद्यालय में सभी छात्र शिक्षा ग्रहण करने आते है और जिन छात्रों को ज्ञान समझ नहीं आता उनके संदेह निवारण हेतु वहां पर अध्यापक उपस्थित होते है जो उनकी शंकाओं का निवारण कर उन्हें सही मार्गदर्शन देते है जिसके उपरांत उन शिक्षाओं से अपने जीवन को सफल बना लेते है।

वही दूसरी ओर कुछ छात्र संकोच अथवा किसी अन्य कारण से उन शंकाओं को अपने मनों में बिठा लेते है और फिर वहीं शंका नकारात्मक भावों में परिवर्तित हो जाती है, जिसके प्रभाव में आकर उन शंकाओं का वह निवारण नहीं करते और परिणामस्वरूप वह जीवन में कभी सफल नहीं बन पाते।

सत्गुरु का भाव केवल यही कि ब्रह्मज्ञान लेने मात्र से जीवन में सफलता संभव नहीं अपितु उसे समझकर, जीवन में उसके ठहराव से ही कल्याण संभव है। अन्यथा हमारा जीवन ज्ञान की रोशनी में भी अंधकारमयी बना रहता है और अपना अमोलक जन्म हम भ्रम भुलेखो में ही व्यतीत कर देते है।

मुक्ति मार्ग का उल्लेख किया

सत्गुरु ने फरमाया कि मुक्ति केवल उन्हीं संतों को प्राप्त होती है जिन्होंने वास्तविक रूप में ब्रह्मज्ञान की दिव्यता को समझा और उसे अपने जीवन में अपनाया। जीवन की महत्ता और मूल्यता तभी होती है जब वह वास्तविक रूप से जी जाये दिखावे के लिए नहीं। वास्तविक भक्ति तो वह है जिसमें हम सभी हर पल, हर क्षण में इस निरंकार प्रभू से जुड़े रहे।

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