Khabarwala 24 News New Delhi : Vasudev Dwadashi Worship आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को वासुदेव द्वादशी मनाई जाती है। यह व्रत भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है। इस दिन भगवान नारायण और माता लक्ष्मी की पूजा करने का भी विधान है। मान्यता है कि यदि कोई व्यक्ति सच्चे मन से इस व्रत को करता है तो उसके जीवन से समस्त पापों का नाश हो जाता है और संतान प्राप्ति की इच्छा भी जल्द पूरी हो जाती है। वैसे ये व्रत खासतौर पर संतान प्राप्ति के लिए ही किया जाता है। उदया तिथि अनुसार, वासुदेव द्वादशी का व्रत 18 जुलाई को रखा जाएगा।
भगवान श्रीकृष्ण पुत्र रूप में प्राप्त हुए थे (Vasudev Dwadashi Worship)
धार्मिक कथाओं के अनुसार यह व्रत नारद मुनि द्वारा वासुदेव एवं देवकी को बताया गया था और वासुदेव और माता देवकी ने पूरी आस्था के साथ द्वादशी तिथि को यह व्रत रखा था। इस व्रत के प्रभाव से भगवान श्री कृष्ण उन्हें पुत्र रूप में प्राप्त हुए थे। पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि 17 जुलाई दिन बुधवार को रात 09 बजकर 03 मिनट से शुरू होगी और 18 जुलाई दिन बुधवार को रात 08 बजकर 44 मिनट पर समाप्त होगी।
वासुदेव द्वादशी पर विधिवत पूजा अर्चना (Vasudev Dwadashi Worship)
वासुदेव द्वादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें। अब भगवान वासुदेव और माता लक्ष्मी की प्रतिमा पर थोड़ा सा गंगाजल छिड़क कर उसे शुद्ध करें। एक लकड़ी की चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर भगवान वासुदेव और माता लक्ष्मी की प्रतिमा की स्थापना करें। भगवान वासुदेव को हाथ का पंखा और फूल अर्पित करें।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः का जप (Vasudev Dwadashi Worship)
वासुदेव और माता लक्ष्मी की प्रतिमा के सामने धूप और दीप जलाएं। भगवान वासुदेव को भोग के लिए पंचामृत के साथ-साथ चावल की खीर या अन्य कोई भी मिठाई चढ़ाएं। पूजा संपन्न होने के पश्चात विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। वासुदेव द्वादशी के दिन भगवान कृष्ण की स्वर्ण की प्रतिमा का दान करना बहुत ही पुण्यदायी माना जाता है। ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः’ मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें।
ये रहा वासुदेव द्वादशी के व्रत का महत्व (Vasudev Dwadashi Worship)
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, जो व्यक्ति सच्चे मन से वासुदेव द्वादशी का व्रत करता है। उसे जीवन में कभी भी दुख नहीं देखना पड़ता और इसके अलावा जो भी वैवाहिक जोड़ा संतान की कामना रखता है। उसे ये व्रत जरूर करना चाहिए। यह व्रत देवशयनी एकदशी के एक दिन बाद किया जाता है और इस व्रत को करने से अंत समय में मोक्ष की प्राप्ति होती है।