Khabarwala 24 News New Delhi : Veer Baal Diwas 2024 History सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह की शहादत का भारतीय सिख इतिहास और भारतीय संस्कृति में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। देश भर में गुरु गोविंद सिंह के बेटों की शहादत पर वीर बाल दिवस मनाया जाता है और उनको श्रद्धांजलि दी जाती है, जिन्होंने नन्ही उम्र में भी धर्म और सिद्धांतों की रक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया था। आइए जान लेते हैं सिखों की बड़ी शहादत की कहानी…
PM मोदी ने की थी कार्यक्रम की घोषणा (Veer Baal Diwas 2024 History)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरु गोविंद सिंह जी के प्रकाश पर्व पर 9 जनवरी 2022 को घोषणा की थी कि बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह की याद में हर साल 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस मनाया जाएगा तब 26 दिसंबर 2022 से दिल्ली में स्थित भारत मंडपम में वीर बाल दिवस पर एक कार्यक्रम के दौरान युवाओं के मार्च पास्ट को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया था।
दसवें गुरु ने की थी खालसा पंथ की स्थापना (Veer Baal Diwas 2024 History)
गुरु गोविंद सिंह नौवें गुरु श्री तेगबहादुर के पुत्र थे। मुगलों के शासनकाल में साल 1675 में कश्मीरी पंडितों की फरियाद पर श्री गुरु तेगबहादुर जी ने दिल्ली में अपना सर्वोच्च बलिदान दे दिया था। इसके बाद श्री गुरु गोविंद सिंह जी 11 नवंबर 1675 को दसवें गुरु के रूप में गुरु गद्दी पर आसीन हुए थे। उन्होंने 1699 ई. में खालसा पंथ की स्थापना की थी। पांच प्यारों को गुरु का दर्जा देकर स्वयं उनके शिष्य बन गए थे। गुरु गोविंद सिंह जी की पत्नियां थी माता जीतो जी, माता सुंदरी जी और माता साहिबकौर जी. उनके बड़े साहिबजादे बाबा अजीत सिंह और बाबा जुझार सिंह ने चमकौर के युद्ध में शहादत हासिल की थी।
लड़ाई में बंदी बनाए गए थे नन्हे साहिबजादे (Veer Baal Diwas 2024 History)
यह साल 1705 की बात है. मुगलों ने गुरु गोविंद सिंह जी से बदला लेने के लिए सरसा नदी के किनारे हमला किया तो गुरु का परिवार बिछड़ गया था। गुरु से बिछड़ने के बाद माता गुजरी अपने रसोइए गंगू के साथ छोटे साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह को लेकर उसके घर मोरिंडा चली गई थीं। गंगू ने अपने घर में माता गुजरी के पास मुहरें देखीं तो उसके मन में लालच आ गया। उसने माता गुजरी और दोनों साहिबजादों को सरहिंद के नवाब वजीर खान के सिपाहियों के हाथों पकड़वा दिया था। सरहिंद के नवाज वजीर खान ने बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह को खुले आसमान के नीचे कैद कर दिया था। माता गुजरी भी साथ थीं।
सिर्फ इतनी ही थी साहिबजादों की आयु (Veer Baal Diwas 2024 History)
तब साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह की उम्र सात और पांच साल ही थी। पूस की सर्द रात में चारों ओर से खुले ऊंचे बुर्ज पर भी माता गुजरी जी अपने दोनों छोटे साहिबजादों को धर्म की रक्षा के लिए सिर न झुकाने और धर्म न बदलने का ही पाठ पढ़ाती रहीं। यही सीख देकर माता गुजरी जी नन्हे साहिबजादों को वजीर खान की कचहरी में भेजती थीं। वजीर खान ने कचहरी में दोनों साहिबजादों से धर्म बदलने के लिए कहा पर उन्होंने जो बोले सो निहाल सत श्री अकाल के जयकारे लगा कर धर्म बदलने से मना कर दिया था। इस पर वजीर खान ने दोनों को धमकी दी थी कि कल तक धर्म बदल लो या फिर मरने के लिए तैयार रहो।
वजीर खान ने दीवार में जिंदा चुनवाया था (Veer Baal Diwas 2024 History)
अगले दिन दोनों साहिबजादों को तैयार करके फिर वजीर खान की कचहरी में भेजा गया। वहां पर एक बार फिर से वजीर खान ने दोनों से धर्म बदलने के लिए कहा, लेकिन छोटे साहिबजादों ने इनकार कर दिया और एक बार फिर से जयकारे लगाने लगे। यह सुनकर वजीर खान गुस्से में आ गया और दोनों साहिबजादों को जिंदा दीवार में चुनवाने का आदेश दे दिया। तारीख थी 26 दिसंबर 1705। इन महान सपूतों को दीवार में जिंदा चुनवा दिया गया था। उन्हीं साहिबजादों की शहादत को नमन करने के लिए सिख समुदाय ने हर साल वीर बाल सप्ताह मनाना शुरू किया। इसमें 26 दिसंबर का दिन उनकी शहादत को समर्पित है।